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जैमिनि-दर्शनम्
पश्चमविकल्पं विकल्पयामः । किं दोषाभाव सहकृत ज्ञानसामग्रीजन्यत्वमेव ज्ञानसामग्रीमात्रजन्यत्वं किं वा दोषाभावा सहकृतज्ञानसामग्रीजन्यत्वम् ? नाद्यः । दोषाभाव सहकृ तज्ञानसामग्रीजन्यत्वमेव परतः प्रामाण्यवादिभिरुररीकरणात् ।
( ५ ) पांचवें विकल्प के सम्बन्ध में हमें पूछना है कि 'केवल ज्ञान के कारणों से उत्पत्ति होना' इसका अर्थ क्या है - ( क ) क्या दोषाभाव के साथ ज्ञान के कारणों से उत्पन्न होना या ( ख ) दोषाभाव से रहित होकर ज्ञान के कारणों से उत्पन्न होना ?
( क ) पहला विकल्प तो ठीक ही नहीं है, क्योंकि दोषाभाव से युक्त ज्ञान के कारणों से उत्पन्न होना ही 'परतः प्रामाण्य' है, इसलिए प्रामाण्य को बाह्य साधन से उत्पन्न ( परत: ) मानने वाले नैयायिकादि इसे तुरत स्वीकार कर लेंगे । ]
विशेष -- चौथे विकल्प में दोष ( अतिव्याप्ति ) का प्रसंग देखा गया है । अयथार्थ ज्ञान जहाँ होता है, उन स्थानों में सामान्य कारणों की अपेक्षा दोषरूपी कारण ही अधिक होता है । इसीलिए 'मात्र' शब्द का प्रयोग करके व्यावृत्ति ( दोषों की ) की जाती है । उसी प्रकार यथार्थ ज्ञान के स्थलों में सामान्य सामग्री की अपेक्षा दोषाभावरूपी कारण ही अधिक है । अत: 'मात्र' शब्द से उस दोषाभाव की व्यावृत्ति ( Exclusion ) करें या नहीं ? पहले विकल्प में दोषाभाव की व्यावृत्ति नहीं करते, दूसरे विकल्प में व्यावृत्ति करते हैं । पहला विकल्प इसलिए उठाया गया कि व्यावृत्ति करने से प्रामाण्य के लक्षण का कोई उदाहरण ही नहीं दिया जा सकता, इसलिए दोषाभाव को हटाना ठीक नहीं है । दूसरे विकल्प के उठाने में कारण है कि यथार्थ ज्ञान में दोषाभाव कारण के रूप में नहीं रह सकता, उसे हटाने पर भी कोई हानि नहीं है ।
नापि द्वितीयः । दोषाभाव सहकृतत्वेन सामग्र्यां सहकृतत्वे सिद्धेऽनन्यथासिद्धावन्वयव्यतिरेक सिद्धतया दोषाभावस्य कारणताया वज्रलेपायमानत्वात् । अभावः कारणमेव न भवतीति चेत्तदा वक्तव्यमभावस्य कार्यत्वमस्ति न वा ? यदि नास्ति तदा घटप्रध्वंसानुत्पत्त्या घटस्य नित्यताप्रसंग: । अथास्ति, किमपराद्धं कारणत्वेनेति सेयमुभयतस्पाशा रज्जुः ।
( ख ) दूसरा विकल्प भी ग्राह्य नहीं । [ दोषाभाव को ज्ञान सामग्री से हटाकर नहीं चला जा सकता । ] कारण यह है कि दोषाभाव के साथ-साथ ही ज्ञान सामग्री ( ज्ञान के कारणों - जैसे इन्द्रिय, प्रकाश आदि ) रहने पर ज्ञान की उत्पत्ति हो सकती है, उसके बिना नहीं ( दोषाभाव न रहने पर = दोष रहने पर ज्ञान सामग्री से ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती ) - इस प्रकार अन्वयव्यतिरेक से हम [ ज्ञानोत्पत्ति के लिए ] कारण के रूप में दोषाभाव को वज्ज्रलेप ( सीमेंट के पलस्तर की तरह दृढ़ता से ) स्वीकार करेंगे । अब यदि आप कहें कि हम अभाव को कारण ही नहीं मानते, ऐसा होता ही नहीं तो बतलाइये कि अभाव कार्य हो सकता है या नहीं ?
३१ स० सं०