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________________ सर्वदर्शनसंग्रहे ( ९. मोक्ष का स्वरूप -- माध्यमिक मत ) ननु दुः खात्यन्तोच्छेदोऽपवर्ग इत्येतदद्यापि कफोणिगुडायितं वर्तते । तत्कथं सिद्धवत्कृत्य व्यवह्रियते इति चेत्-मैवम् । सर्वेषां मोक्षवादिनामपवर्गदशायामात्यन्तिकी दुःखनिवृत्तिरस्तीत्यस्यार्थस्य सर्वतन्त्रसिद्धान्तसिद्धतया घण्टापथत्वात् । तथा हि-आत्मोच्छेदो मोक्ष इति माध्यमिकमते दुःखोच्छेदोऽस्तीत्येतावत्तावदविवादम् । ४२२ कोई शंका करता है - अपवर्ग का जो लक्षण आपने दिया है कि यह दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति है यह तो आज तक केहुनी ( Elbow, हाथ के बीच का भाग ) को गुड़ समझने की भूल के बराबर ही है ( = असिद्ध या निष्फल है ) । [ जैसे केहुनी में गुड़ नहीं है किन्तु कोई भूल से उसका आस्वादन करने लगे उसी प्रकार मोक्ष का स्वरूप असिद्ध है । ] तो आप लोग सिद्ध की तरह उसे मानकर क्यों प्रयोग कर रहे हैं ? उत्तर में यह कहा जा सकता है कि सभी मोक्षवादी ( मोक्ष माननेवाले, इसका लक्षण करनेवाले ) तो मानते हैं कि अपवर्ग की दशा में दुःख का आत्यन्तिक विनाश हो जाता है - इस प्रकार यह बात सभी तन्त्रों के सिद्धान्त से सिद्ध होने के कारण घण्टापथ ( राजमार्ग, हाथी आदि जहाँ घंटे की ध्वनि करते हुए चलें ) की तरह [ प्रशस्त और प्रतिष्ठित ] है । इसे यों देखें - माध्यमिक ( बौद्धों ) के मत से तो आत्मा का विनाश कर देना ही मोक्ष है, इस प्रकार [ उनके मत में भी ] दुःख का नाश होता है, इतना तो निर्विवाद है । अथ मन्येथाः - शरीरादिवदात्माऽपि दुःखहेतुत्वादुच्छेद्य इति तन्त्र संगच्छते । विकल्पानुपपत्तेः । किमात्मा ज्ञानसन्तानो विवक्षितस्तदतिरिक्तो वा ? प्रथमेन विप्रतिपत्तिः । कः खल्वनुकूलमाचरति प्रतिकूलमाचरेत् ? द्वितीये तस्य नित्यत्वे निवृत्ति रशक्यविधानैव । अनित्यत्वे प्रवृत्त्यनुपपत्तिः । व्यवहारानुपपत्तिश्वाधिकं दूषणम् । न खलु कश्चित्प्रेक्षावानात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवतीति सर्वतः प्रियतमस्यात्मनः समुच्छेदाय प्रयतते । सर्वो हि प्राणी सति धर्मिणि मुक्त इति व्यवहरति ननु । अब यदि आप मानते हों कि शरीर आदि की तरह आत्मा भी दुःख का कारण है और इसीलिए उसका उच्छेद ( विनाश ) होना चाहिए; तो यह ठीक नहीं । [ शंका करनेवाले यह कहते हैं कि माध्यमिक बौद्धों की समता करने से नैयायिकों को भी 'आत्मोच्छेद ही मोक्ष है' यह मानना पड़ेगा। पर नैवाविक पहले ही कह चुके हैं कि माध्यमिकों की उक्ति से हमें यही लेना है कि वे भी दुःखोच्छे को मोक्ष मानते हैं | आत्मोच्छेदवाले पक्ष का तो हम खंडन करेंगे। आत्मा का उच्छेद मानने पर ] इन दोनों विकल्पों की असिद्धि हो जायगी। अच्छा यह कि आत्मा को आप ज्ञानसंतान ( Successive.
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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