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________________ ३७४ सर्वदर्शनसंग्रहे नहीं माना जा सकता, क्योंकि शक्ति के अभाव में वह कारण नहीं बन सकता। सक्रिय अवयव से ही आकाश-विभाग माना जा सकता है। 'स्वतन्त्र अवयव' का यहाँ अर्थ है अपने विनाश के पश्चात् आनेवाले काल का कोई विशेष अवयव । ] विशेष-विभागज विभाग को स्वीकार करने पर द्वयणुकोत्पत्ति की दशक्षणा या एकादशक्षण प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। वह इस प्रकार है। जब हम विभागज विभाग को स्वीकार करते हैं तो साथ-ही-साथ यह भी मानना पड़ेगा कि एक विभाग बिना किसी की अपेक्षा रखे हुए दूसरे विभाग को उत्पन्न नहीं कर सकता। यदि निरपेक्ष होकर विभाग दूसरे विभाग का उत्पादन करता है तब उस पहले विभाग को विभाग समझना भूल है । वस्तुतः वह कर्म है; क्योंकि कणाद ने वैशेषिक सूत्र ( १११११७ ) में कहा है-संयोगविभागयोरनपेक्षं कारणं कर्म । इसका अर्थ है कि संयोग और विभाग को उत्पन्न करनेवाला पदार्थ जो अपने बाद किसी की अपेक्षा नहीं रखे वह कर्म है । विभाग ( आकाशविभाग ) यदि किसी निरक्षेप विभाग ( अवयवविभाग ) से उत्पन्न होने लगे तो वह उत्पादन विभाग कर्म के लक्षण में अतिव्याप्तिदोष होता है । दूसरी ओर यदि कर्म के लक्षण में कुछ परिवर्तन करें कि उत्तरसंयोगोत्पत्ति के समय पूर्वसंयोग के नाश की अपेक्षा है तो अव्याप्ति-दोष होगा । अन्ततः यह मानना पड़ा कि विभागज विभाग में विभागारम्भ के लिए सापेक्ष विभाग ही कारण हो सकता है। अब प्रश्न है कि अपेक्षा हो तो किसकी? यदि द्रव्यारम्भ करनेवाले संयोग की निवृत्ति करनेवाले काल की अपेक्षा करके विभागज विभाग मानते हैं तो दशक्षणा ( Ten-moment process ) प्रक्रिया होगी । यदि द्रव्यनाश कारनेवाले काल की अपेक्षा करेंगे तो एकादशक्षणा प्रक्रिया होगी । दोनों की तुलना निम्न चित्र द्वारा की जा सकती हैदशक्षणा एकादशक्षणा अग्निसंयोग से द्वघणुक का आरम्भ | अग्निसंयोग से परमाणु में क्रिया, उसके करनेवाले परमाणु में किया, उसके बाद | बाद विभाग, तब द्रव्यारम्भक संयोग का विभाग, तब आरम्भक के संयोग का | नाश । तबनाश । तब (१) द्वयणुकनाश (१) द्वयणुकनाश और विभागज | (२) द्वयणुकनाश से सम्बद्ध काल विभाग की अपेक्षा रखते हुए विभागज विभाग तथा (२) श्यामनाश और पूर्वसंयोग का | श्याम का नाश नाश (३) पूर्वसंयोग का नाश और ( ३ ) रक्सोलति और उत्तरसंयोग | रक्तोत्पत्ति ( ४ ) अग्निनोदन से उत्पन्न हुई पर- (४) उत्तरसंयोग माणुगत क्रिया का नाश (५) अग्निनोदन से उत्पन्न परमा
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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