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शेव-दर्शनम्
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इसीलिए तत्त्व-प्रकाश में कहा गया है-'पाश चार प्रकार के हैं ।' श्रीमत् मृगेन्द्र ने भी कहा गया है-'आवरण का स्वामी ( आवृति + ईश = मल ), बलवान् ( रोधशक्ति ), कर्म तथा माया के कार्य-ये पाशजाल हैं, इनके धर्म इनके अपने-अपने नाम (निर्वचन करके ) से ही स्पष्ट है [ व्याख्या की आवश्यकता नहीं है । ]
अस्यार्थः-प्रावृणोति प्रकर्षणाच्छादयत्यात्मनः स्वाभाविक्यौ दक्क्रिये इति प्रावतिरशुचिर्मलः । स च'ईष्टे स्वातन्त्र्येणेति ईशः। तदुक्तम्३०. एको ह्यनेकशक्तिर्द क्रिययोश्छादको मलः पुंसः।
तुषतण्डुलवज्झयस्ताम्राश्रितकालिकावद्वा ॥इति । इसका यह अर्थ है-(१) प्रावरण अर्थात् अच्छी तरह (प्र) आत्मा की स्वाभाविक दृक् ( ज्ञान ) और क्रिया की शक्तियों को आच्छादित ( आवरण ) करे वह प्रावृति या अपवित्र मल है। साथ-ही-साथ जो स्वतन्त्रतापूर्वक शासन (Vईश् ) करे वह ईश है ( अर्थात् शासक मल ही प्रावृतीश है ) । कहा है-'जो एक होने पर भी अनेक शक्तियों ( अनेक प्रकार की आच्छादनशक्ति तथा नियामकशक्ति ) से युक्त है तथा पुरुष के ज्ञान और क्रिया को ढकनेवाला है, वही मल है। इसका ज्ञान तुष-तण्डुल के सम्बन्ध की तुलना से करें (आच्छादक और आच्छाद्य का सम्बन्ध, या ताम्र-धातु में स्थित कालिका ( जंग या मोरचा लगना Rust ) की तुलना से करें।' ___ बलं रोधशक्तिः। अस्याः शिवशक्तेः पाशाधिष्ठानेन पुरुषतिरोधायकत्वादुपचारेण पाशत्वम् । तदुक्तम्--- ३१. तासामहं वरा शक्तिः सर्वानुमाहिका शिवा ।
धर्मानुवर्तनादेव पाश इत्युपचर्यते ॥ इति । (२) बल का अर्थ रोधशक्ति है। यह शिवशक्ति ( वस्तु की अपनी सामर्थ्य, जैसे अग्नि में दहनशक्ति, जल में शैत्योत्पादनशक्ति आदि ) पाश में अधिष्ठित होकर पुरुष (आत्मा ) के स्वरूप को छिपा देती है, इसलिए इसे औपचारिक ( आलंकारिक ) विधि से पाश मानते हैं । कहा गया है-'इनमें मैं सर्वश्रेष्ठ शक्ति हूँ और सबों पर दया करने वाली शिवा ( कल्याणमयी ) हूँ । धर्म ( आश्रय की वस्तुओं के धर्म ) के अनुसार चलने के कारण इसे पाश कहते हैं।' [ ज्ञान और क्रिया की शक्तियों को ढंक देने की सामर्थ्य ही रोधशक्ति है जो मल में स्थित है। ] ___क्रियते फलार्थिभिरिति कर्म धर्माधर्मात्मकं बीजाङकुरवत्प्रवाहरूपेणानादि । यथोक्तं श्रीमत्किरणे
३२. यथानादिर्मलस्तस्य कर्माल्पकमनादिकम् ।
यद्यनादिन संसिद्धं वैचित्र्यं केन हेतुना ॥ इति ।