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शैव दर्शनम्
तन्त्र का तत्त्व जाननेवाले लोगों ने कहा भी है- 'संसार के पदार्थों और चार पादों से निर्मित महातन्त्र का संक्षेप विस्तार से किया ।'
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गुरु ने एक सूत्र में हो तीन किया, फिर उसका निरूपण
विशेष - शैवदर्शन के मूल ग्रन्थ हैं शैवागम जिनमें शिवसंहिता, अहिर्बुध्न्य-संहिता आदि प्रसिद्ध हैं । इनके अनन्तर आगम और यामल ग्रन्थ हैं, जो सभी संस्कृत में हैं । इनके अतिरिक्त शैवमत का जो गढ़ तमिळ देश में है, वहाँ की परम्परा में तमिळ भाषा में शैव ग्रन्थ प्राप्त हैं । ८४ सन्तों की बात वहाँ मिलती हैं, जिनमें चार आचार्यों- अप्पार, ज्ञानसम्बन्ध, सुन्दरमूर्ति तथा माणिक्कवाचक ( समय ७वीं - ८वीं श० ) - का नाम प्रसिद्ध है । इन सबों ने इस मत का प्रवर्तन किया । इस प्रकार उत्तरी भारत में जहाँ संस्कृत के आगम-ग्रन्थ शैवमत की मूल भित्ति है, वहाँ भारत में उक्त आचार्यों की तमिल रचनाएँ ही
मत की आधार हैं । इन्हें दक्षिण में लोग दक्षिणी आगमों के समान ही अत्यन्त अभ्यर्हित मानते हैं । वास्तव में शैवमत अभी दक्षिण में ही जीवित है । इन ग्रन्थों को दक्षिण में 'शैवसिद्धान्त' या 'शैवागम' भी कहते हैं । वहाँ प्रसिद्धि है कि शिव ने अपने पाँच मुखों से २८ तंत्रों का आविर्भाव किया। उनकी संख्या निम्नलिखित है
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( १ ) सद्योजात मुख से कामिक, योगज, चिन्त्य, करण, अजित ( ५ ) । (२) वामदेव मुख से - दीप्त, सूक्ष्म, सहस्र, अंशुमान, सुप्रभेद (५) । ( ३ ) अघोर मुख से - विजय, निश्वास, स्वायम्भुव, अनल, वीर ( ५ ) । ( ४ ) तत्पुरुष मुख से -- रौरव, मुकुट, विमल, चन्द्रज्ञान, बिम्ब ( ५ ) ।
( ५ ) ईशान मुख से - प्रोद्गीत, ललित, सिद्ध, सन्तान, सर्वोत्तर, परमेश्वर, किरण और वातुल ( ८ ) ।
अभिनवगुप्त द्वारा रचित तन्त्रालोक की टीका करते समय जयरथ ने इन तन्त्रों का उल्लेख किया है । इन तन्त्रों पर भी अनेक टीकाएँ हैं, जिनसे शैवागम साहित्य की विपुलता का अनुमान लग सकता है । इसके अलावे भी सद्योज्योति ( ८०० ई० ) के द्वारा रचित नरेश्वर परीक्षा, रौरवागमवृत्ति तत्त्वसंग्रह, तत्त्वत्रय, भोगकारिका और परमोक्षनिरासकारिका, हरदत्त शिवाचार्य ( १०५० ई० ) रचित श्रुतिसूवितमाला और चतुर्वेदतात्पर्य-संग्रह, रामकण्ठ ( ११०० ई० ) लिखित मातङ्गवृत्ति, नादकारिका और सद्यो - ज्योति के ग्रन्थों की टीकाएँ, श्रीकण्ठ ( ११२५ ई० ) का रत्नत्रय, भोजराज ( वही समय ) तत्त्वप्रकाशिका और रामकण्ठ के शिष्य अघोर शिवाचार्य रचित तत्त्व - प्रकाशिका और नादकारिका की वृत्तियाँ- ये ग्रन्थ भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । सद्योज्योति के अन्तिम पाँच ग्रन्थ, भोजराज की तत्त्व - प्रकाशिका, रामकण्ठ की नादकारिका और श्रीकण्ठ का रत्नत्रय - ये आठ ग्रन्थ अष्टप्रकरण कहलाते हैं । ये सिद्धान्तग्रन्थ शैवागमसंघ से नागराक्षरों में प्रकाशित हो रहे हैं । विशेष विवरण देखें- पं० बलदेव उपाध्याय, 'भारतीय दर्शन' पृ० ५५०-५२ ।