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________________ १०४ सर्वदर्शनतंबहेदोषों को जीत चुका हो, तीन लोकों में पूजित हो, वस्तुएँ जैसी हैं उन्हें वैसी ही कहता हो, वही परमेश्वर अर्हत् देव है। विशेष-हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई०) अपने समय के सबसे बड़े विद्वान थे जिन्होंने काव्य, व्याकरण, दर्शन आदि अनेक शास्त्रों में ग्रन्थ-रचना की । प्रमाणमोमांसा तथा शब्दानुशासन इनके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । सर्वांगीण प्रतिभा के कारण ही इन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' उपाधि मिली थी। (८. अर्हत् के विषय में विरोधियों को शंका ) ननु न कश्चित्पुरुषविशेषः सर्वज्ञपदवेदनीयः प्रमाणपद्धतिमध्यास्ते । तत्सद्भावग्राहकस्य प्रमाणपञ्चकस्य तत्रानुपलम्भात् । तथा चोक्तं तौतातितः ६. सर्वज्ञो दृश्यते तावन्नेदानीमस्मदादिभिः । __ दृष्टो न चैकदेशोऽस्ति लिङ्ग वा योऽनुमापयेत् ॥ ७. न चागमविधिः कश्चिन्नित्यसर्वज्ञबोधकः। न च तत्रार्थवादानां तात्पर्यमपि कल्प्यते ॥ कोई शंका कर सकता है कोई विशेष पुरुष, 'सर्वज्ञ' शब्द के द्वारा बोधनीय नहीं है जो प्रमाण की पदवी पा सकता है। उस ( अर्हत्, सर्वज्ञ ) की सत्ता को सिद्ध करनेवाले पांचों प्रमाणों की प्राप्ति वहाँ नहीं है । ( पांच प्रमाण = प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द और अर्थापत्ति । इनमें किसी से अर्हत् की सिद्धि नहीं होती। ) जैसा कि तौतातित ( कुमारिलभट्ट )' ने कहा है (६) क. प्रत्यक्ष-प्रमाण से असिद्धि-'इस समय सर्वज्ञ ( ईश्वर ) हमलोगों को दिखलाई नहीं पड़ता।' ख. अनुमान-प्रमाण से असिद्धि-और न उस ( सर्वज्ञ ) का कोई भाग ही दिखलाई पड़ता कि लिंग ( हेतु Middle term ) बनकर वह सर्वज्ञ के अनुमान में सहायता करे ।' ___७. शब्द-प्रमाण से असिद्धि-'न तो आगम ( वेद-शब्द ) की कोई विधि ( आज्ञा ) ही ऐसी है जिससे नित्य और सर्वज्ञ ( अर्हत् ) का बोध हो। अर्थवाद-वाक्यों का भी तात्पर्य ( अर्थ ) यहाँ पर नहीं लगता।' १. तौतातित =अभ्यंकर ने इसका अर्थ 'बौद्ध' दिया है जब कि कॉवेल कुमारिल भट्ट का इसे पर्याय समझते हैं। आगे दिये गये श्लोक वास्तव में कुमारिल के हैं जो जैनों के विरोध में कहे गये हैं। इसके अलावे प्रमाणपञ्चक की स्वीकृति (प्रभाकर मत के अनुसार ) तथा विधि अर्थवाद का उल्लेख बतलाता है कि शंका मीमांसकों की ओर से है, बौद्धों से नहीं।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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