________________
( ३१ )
श्रौत दार्शनिकों ने श्रुति की प्रामाणिकता सबसे ऊपर स्वीकार की है । यहाँ यह स्मरणीय है कि सत्ताओं के भेद से श्रुति और प्रत्यक्ष इन दोनों प्रमाणों में कोई विरोध नहीं है। जहाँ तक व्यवहार-जगत् का सम्बन्ध है, हमें प्रत्यक्ष को प्रश्रय देना ही पड़ेगा। लौकिक दृष्टि से द्वैत भी सत्य ही है। किन्तु पारमार्थिक दृष्टिकोण से विचार करने पर श्रुतियों को प्रधानता देनी पड़ेगी। उस दशा में अद्वैतवाद ही सत्य सिद्ध होता है ।
प्रमाणों के इस विवेचन में हम दो बातें स्पष्ट रूप से देखते हैं—एक तो प्रमाणों की संख्या और दूसरी प्रमाणों की प्रामाणिकता या पूर्वापरता। यह सर्वमान्य है कि प्रमेय पदार्थों का विचार करने से पूर्व प्रमाणों का संग्रह कर लेना आवश्यक है।
प्रमाण से जिसकी सिद्धि की जाती है उसे प्रमेय कहते हैं । इसमें मुख्य रूप से तीन पदार्थ मिलते हैं । जीव जगत् और ईश्वर । कोई दार्शनिक तो इन तीनों की पदार्थता मानते हैं कुछ केवल दो की और कुछ केवल एक की। वस्तुस्थिति चाहे जो भी हो इन तीनों की व्याख्या उन सबों को करनी पड़ती है-चाहे वे तीनों को एक ही में क्यों न समेट लें । तो इनका क्रमशः निरीक्षण करें
(१) ईश्वर-ईश्वर के विषय में चार्वाक का तो कहना है कि इसकी सत्ता अलौकिक नहीं । पृथ्वी का राजा ही परमेश्वर है। यदि चार्वाकों से पूछा जाय कि ईश्वर के न मानने पर लौकिक और अलौकिक कर्मों का फल कौन देगा? तो ये बतलायेंगे कि लौकिक कर्म तो राजा के अधीन हैं ही—वही तो निग्रह और अनुग्रह करने में समर्थ है। याचकों की दान देकर और चोरों को दण्ड देकर वह समी कर्मों का फल यथाविधि देता ही है। अब रही बात अलौकिक कर्मों की। ये अलौकिक कर्म वास्तव में धूतों के उपख्यान हैं जो जनसामान्य को ठगने के लिये वैदिक वंचकों के बकवाद हैं ।
बौद्ध और जैन अपने-अपने धर्म प्रवर्तकों को ही ईश्वर मानते हैं। वस्तुतः ये लोग भी ईश्वर की सत्ता मानते ही नहीं। सांख्य में भी ईश्वर नहीं माना जाता । मीमांसक लोग भी ईश्वर नहीं मानते किन्तु मनुष्य के कर्मों का शुभअशुभ फल देने के लिये अदृष्ट नाम की एक शक्ति स्वीकार करते हैं । वैयाकरण लोगों से पूछने पर सम्भवतः वे यह कहेंगे कि शब्द की परा अवस्था जिसे स्फोट भी कहते हैं, वही ईश्वर है । रामानुज ईश्वर पर कुछ विशेषणों का आरोपण करते हैं। उनके अनुसार ईश्वर जीवों का नियामक अन्तर्यामी और उनसे पृथक् पदार्थ है । जीव और जड़ उसके शरीर हैं जीवों को वह उनके कर्मों के अनुसार कल देता है । मध्वाचार्य के अनुसार भी ईश्वर इन्हीं विशेषणों से युक्त