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________________ बौद्ध-चर्शनम् .७५ ज्ञान से तो वह सम्बद्ध है)। संसार में पाते हैं कि जो नियन्त्रण करता है, वही अधिपति होता है। इसी प्रकार चित्त और उसके विभिन्न विकारों के रूप में सुख आदि ( आन्तरिक विषयों ) के भी चार कारण देख लें [ क्योंकि वह भी प्रवृत्तिविज्ञान ही है ] । (२७. चित्त और उसके विकार-पांच स्कन्ध ) सोऽयं चित्तचत्तात्मकः स्कन्धः पञ्चविधो रूप-विज्ञान-वेदना-संज्ञासंस्कारसंज्ञकः। तत्र रूप्यन्त एभिविषया इति रूप्यन्त इति च व्युत्पत्त्या सविषयाणीन्द्रियाणि रूपस्कन्धः । आलयविज्ञान-प्रवृत्तिविज्ञानप्रवाहो विज्ञानस्कन्धः । प्रागुक्तस्कन्धद्वयसम्बन्धजन्यः सुखदुःखादिप्रत्ययप्रवाहो वेदनास्कन्धः। गौरित्यादिशब्दोल्लेखिसंवित्प्रवाहः संज्ञास्कन्धः। वेदनास्कन्ध-निबन्धना रागद्वेषादयः क्लेशाः उपक्लेशाश्च मदमानादयो धर्माधमौ च संस्कारस्कन्धः ॥ तो चित्त और चित के विकारों के रूप में यह स्कन्ध ( अमूर्त तत्त्व ) पाँच प्रकार का है-( १ ) रूपस्कन्ध ( Sensational ), (२) विज्ञानस्कन्ध ( Perceptional ), ( ३ ) वेदनास्कन्ध ( Affectional ), ( ४ ) संज्ञास्कन्ध ( Verbal ) और (५) संस्कारस्कन्ध ( Impressional ) । उनमें विषयों के साथ इन्द्रियों का नाम रूपस्कन्ध है, जिसकी व्युत्पत्तियाँ हैं जिनसे विषयों का निरूपण होता है (= इन्द्रियाँ ) और जो निरूपित होते हैं (= विषय ) । आलयविज्ञान और प्रवृत्तिविज्ञान का प्रवाह विज्ञानस्कन्ध है ( केवल यही स्कन्ध चित्त है, अन्य चैत या चित्त के विकार हैं )। पहले कहे गये इन दोनों स्कन्धों के सम्बन्ध से उत्पन्न सुख-दुःख आदि प्रतीतियों का प्रवाह ( परम्परा ) वेदनास्कन्ध है । 'गौ' इत्यादि शब्दों को व्यक्त करनेवाले ज्ञानों का प्रवाह संज्ञास्कन्ध है। वेदनास्कन्ध पर आधारित रागद्वेषादि क्लेश ( कष्ट ), मद-मानादि उपक्लेश ( अल्प कष्ट ) तथा धर्म-अधर्म को संस्कारस्कन्ध कहते हैं। विशेष-स्कन्धों का यह क्रम वस्तुतत्त्व के ज्ञान के लिए अच्छा है किन्तु बौद्ध ग्रन्थों में विज्ञानस्कन्ध को दूसरा स्थान न देकर पांचवां स्थान दिया गया है । वसुबन्धु ने अभिधर्मकोश में इसके लिए कारणों की मीमांसा की है। उनके विचार से क्रम स्थूल से सूक्ष्म की की ओर गया है । संस्कार की अपेक्षा विज्ञान सूक्ष्म है और सुगम नहीं है। ये स्कन्ध चित्त और उसके विकारों से सम्बद्ध हैं। इनमें विज्ञानस्कन्ध चित्त है तथा अन्य स्कन्ध उसके विकारस्वरूप हैं । चैत्त के बाद चित्त का वर्णन सम्भव भी है। विज्ञान दो प्रकार के हैं-आलयविज्ञान और प्रवृत्तिविज्ञान । 'अहम्' के आकारवाले आलयविज्ञान का प्रवाह ही आत्मा है। 'इदम्' के आकार में प्रवृत्तिविज्ञान है। विषयों के आकार में आने पर यह रूपस्कन्ध कहलाता है। इसमें इन्द्रियाँ भी हैं जो भौतिक नहीं, चैत्त ( Mental ) ही हैं । जब विज्ञानस्कन्ध ( चित्त ) रूपस्कन्ध ( विषय + इन्द्रिय ) के
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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