________________
पारूप्यम्
217
सारोपालक्षणा
सारं वसुधा, वसुधायामपि पुरं पुरे सौधम् । सौधे तल्पं तल्पे वाराङ्गनानङ्गसर्वस्वम्।। इस पद्य में उत्तरोत्तर राज्य में पृथ्वी, पृथ्वी में नगर, नगर में भवन, में पर्यङ्क तथा पर्यङ्क में कामिनी को सारवती बताया गया है। ( 10/102)
भवन
सारूप्यम्-एक नाट्यलक्षण | अनुरूप वस्तु की सरूपता के कारण चित्त के क्षोभ की वृद्धि को सारूप्य कहते हें सारूप्यमनुरूपस्य सारूप्यात्क्षोभवर्धनम्। यथा - वे.सं. में दुर्योधन के भ्रम से युधिष्ठिर का भीम के प्रति क्षुब्ध होकर 'दुरात्मन्! दुर्योधनहतक ! ० ' आदि कथन । (6/200)
सारोपालक्षणा-लक्षणा का एक भेद । अनिगीर्ण अर्थात् स्पष्टतः उक्त विषय (उपमेय) की अन्य (उपमान) के साथ तादात्म्य प्रतीत कराने वाली लक्षणा सारोपा कही जाती है- विषयस्यानिगीर्णस्यान्यतादात्म्यप्रतीतिकृत् सारोपा स्यात् । यही रूपक अलङ्कार का बीज है। यह चार प्रकार की है(1) रूढ़िउपादानसारोपा- अश्वः श्वेतो धावति । यहाँ अश्व अनिगीर्ण अर्थात् स्पष्टतः उक्त है तथा अपने में विद्यमान श्वेत गुण के साथ उसका तादात्म्य प्रतीत होता है। श्वेत शब्द श्वेतगुणविशिष्ट अर्थ में रूढ़ है तथा तादात्म्यप्रतीति रूप लक्ष्यार्थ के साथ अपने स्वरूप का भी बोध कराता है। अश्व पर श्वेत का आरोप होने के कारण यह सारोपा भी है। (2) रूढ़िलक्षणसारोपा - कलिङ्गः पुरुषो युध्यते । यहाँ कलिङ्ग शब्द कलिङ्गवासी का उपलक्षण मात्र है तथा इस अर्थ में प्रसिद्ध होने के कारण रूढ़ि है | पृथक् रूप से उक्त पुरुष के साथ अभेद प्रतीत होने के कारण सारोपा है। (3) प्रयोजनउपादानसारोपा - एते कुन्ताः प्रविशन्ति । यहाँ सर्वनाम पद ‘एतत्' से कुन्तधारी पुरुषों का निर्देश किया गया है और कुन्तों के साथ उनका तादात्म्य प्रतीत होता है। ( 4 ) प्रयोजनलक्षणसारोपाआयुघृतम्। यहाँ कारणरूप से आयु का सम्बन्धी 'घृत' उसके साथ तादात्म्य रूप से प्रतीत होता है । यहाँ घृत अन्यापेक्षया विलक्षण रीति से आयु का उपकारक है, यह द्योतित करना उसका प्रयोजन है तथा आयु शब्द आयुष्कारण अर्थ में स्वयं को समर्पित कर रहा है, अतः लक्षणलक्षणा भी है। (2/13)
S