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________________ चतुर्थः परिच्छेदः। उकार को 'इदूतौ' वार्तिक की इष्टि से ऊकार । (तव+ इति) तुह इति, प्रकृत सूत्र से इकारलोप । ४१ तकारद्विस्व । तुहत्ति। (मम इति) मह इति । महत्ति। (गतः इति)गओत्ति । (श्रुतः इति)सुओत्ति । (दयितः इति) दइओत्ति । २+५+२६ से रूपसिद्धि हो जायगी। ४२ से सर्वत्र ओकार । कहीं पर यष्टि शब्द के लकार का विकल्प से लोप हो। (चर्मयष्टिः) ५ से रेफलोप। ६ से द्विस्व । 'यष्टयां लः' २+ २९ से लकार । २८ से ठ। ६ से द्वित्व । ७ से टकार । विकल्प से प्रकृत सूत्र से लकार का लोप। चम्मट्टी, चम्मलट्ठी। कहीं यष्टि के लकार का लोप नहीं होगा। जैसे(असियष्टिः) असिलट्ठी। कहीं पर बहुल ग्रहण से सन्धि ही न होगी। (मुखचन्द्रः) मुहअंदो। (परिकरः) परिअरो। (उपकारः) उवआरो।(प्रदीपः)पईवो। (दुराचारः) दुराआरो। (विकालः) विआलो। सर्वत्र पूर्वोक्त (२३+२+५+१८) नम्बर के सूत्रों से सिद्धि जानना। (परस्परम् ) इत्यादिक शब्दों में कहीं सकार का और कहीं पकार का लोप होता है। तो परस्पर शब्द के सकार का लोप। ६ से पकार. द्वित्व । ३५ प्रकृत सूत्र से ओकार । परोप्परं । (अन्तः पुरम् )२ से पकार का लोप। प्रकृत सूत्र से विसर्गसहित अकार को एकार। अन्तेउरं। (त्रयोदश) तेरह । (२+१४) द्वितीय अध्याय चौदहवें सूत्र में साधुस्व है। (त्रयोविंशतिः)५से रफलोप । 'मांसादिषु (४+१६) सूत्र से अनुस्वार का लोप । 'आदीदूतौ' से ईकार। ३१ से एकार । ३५ प्रकृत सूत्र से ति को आकार । तेवीसा । (त्रयस्त्रिंशत् )५ से रेफलोप। ३१ से एकार। 'मांसादि' से अनुस्वारलोप। ३५ प्रकृत सूत्र में 'लोपः साचो यकारस्य' से यकार का लोप । 'आदीदूतौ' वार्तिक से ति के इकार को ईकार। ६ से 'त्रिंशत्' के तकार को द्वित्व । 'तेत्तीशत्' इस अवस्था में २५ सेशको स भादेश । ६० से तकार का लोप । 'खियामात्' से आकार । तेत्तीसा। कहीं एक पद में भी भिन्न-भिन्न आदेश होते हैं। (पुनः) २५ से न को ण आदेश। प्रकृत सत्र से कहीं भोकार, पुणो। कहीं आकार, पुणा। कहीं विसर्ग का लोप, पुण । ये सब आदेश बहुल-ग्रहण से कल्पना कर लेना। तथा महाकविप्रयुक्त अथवा लोकम्यवहत शब्दों 'में संस्कृतानुगामी शब्द की कल्पना करके आदेश-विशेष की कल्पना कर लेना। क्योंकि समस्त प्राकृत वाखाय के संस्कृत शब्द ही जनक अथवा माता हैं । म्लेच्छादिक देशों में स्वरूप अधिक बिगड़ गया है। परन्तु वे भी संस्कृत शब्द से जन्य हैं। इति ॥ नोट-नं० (२) कगचजतदपयवां प्रायो लोपः। (१०) इण्यादिषु । (२६) शपोः सः । (४) अधो मनयाम् । (५) सर्वत्र लवराम् । (6) दोषादेशयोईिवमनादी (60) पोवः। (२५) नो णः सर्वत्र । (९) ऋतोऽत् । (३५)सन्धावचामलोपविशेषा बहु लम (२४) भादेयों जः। (१९) टो डः। (४१) नीडादिषु। (२३) खपथपाहा। (३२) त्यथ्यां चछजाः। (१२) अत मोत् सोः। (२८)ष्टस्य ः। (७) वर्गेऽयुजः पूर्वः। (६) एशग्यादिषु । (६०) अन्त्यस्य हलः। उदुम्बरे दोर्लोपः ॥२॥ उदुम्बरशब्दे दु इत्येतस्य लोपो भवति । उम्बरं (४-१७ वर्गान्ता, ५-३० सोबिन्दुः)॥२॥
SR No.091018
Book TitlePrakruta Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagganath Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size14 MB
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