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________________ प्रकाशकीय प्राकृत भाषा की गणना प्राचीन भारतीय भाषाओं में की जाती है। पिछले ढाई हजार वर्षों में इस भाषा में विपुल साहित्य की रचना हुई है । भगवान् महावीर की मूल वाणी जैन आगमों के रूप में इसी भाषा में निबद्ध है । जैन आगमों के अतिरिक्त शिलालेख, काव्य-ग्रन्थ, कथा-ग्रन्थ, चरित - काव्य, सट्टक आदि विभिन्न रचनाएँ भी इस भाषा में प्राप्य हैं। प्राचीन भारतीय सभ्यता, संस्कृति, समाज, राजनैतिक व्यवस्था आदि का यथार्थ ज्ञान कराने हेतु प्राकृत का यह साहित्य अत्यन्त उपयोगी है। प्राकृत भाषा का प्रचार एवं प्रसार प्राकृत भारती अकादमी का मुख्य उद्देश्य रहा है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्राकृत भारती अकादमी द्वारा डॉ० कमलचन्द सोगाणी के निर्देशन में प्राकृत शिक्षण की समुचित व्यवस्था की गई है। अकादमी द्वारा 'प्राकृत प्रथमा' (सर्टिफिकेट) एवं 'प्राकृत विशारद' (डिप्लोमा) ये दो पाठ्यक्रम नियमित एवं पत्राचार द्वारा संचालित किए जा रहे हैं । प्राकृत के इन पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होने वाले विद्यार्थियों को प्राकृत भाषा के व्याकरण के साथ-साथ प्राकृत साहित्य का भी अध्ययन कराया जाता है। प्राकृत भाषा में लिखे गये साहित्य पर पूर्व में कई विद्वानों ने विस्तार से प्रकाश डाला है, लेकिन सामान्य पाठकों के लिए तथा प्राकृत के विद्यार्थियों के लिए सरल व सुबोध शैली में लिखी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है। अतः श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर एवं प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा संयुक्त रूप से पुष्प संख्या 168 के रूप में प्राकृत साहित्य की रूप-रेखा को प्रकाशित किया जा रहा है । प्राकृत साहित्य का प्रारम्भिक अध्ययन करने वाले (III)
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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