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________________ में अपनी छोटी बहन सुन्दरी के अध्ययन हेतु धारानगर में इस कोश-ग्रन्थ की रचना की थी। यह अति संक्षिप्त पद्यबद्ध कोश है। इस कोश-ग्रन्थ में संस्कृत के अमरकोश की रीति से करीब 279 गाथाओं में 998 प्राकृत शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का संग्रह किया गया है। ग्रन्थ का प्रारम्भ मंगलाचरण से हुआ है, जिसमें विभिन्न देव पर्यायों का निरूपण हुआ है। शब्दों की चयन प्रक्रिया में अकारादि क्रम को न अपना कर विषय, स्थान व समय के आधार पर केवल नाम शब्दों का चयन कर उनके पर्यायों का उल्लेख किया गया है। संस्कृत व्युत्पत्तियों से सिद्ध प्राकृत शब्द तथा देशी शब्द इन दोनों ही प्रकार के शब्दों का संकलन इस ग्रन्थ में किया गया है। कवि ने भ्रमर के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख निम्न गाथा में इस प्रकार किया है। फुल्लंधुआ रसाऊ भिंगा भसला य महुअरा अलिणो । इंदिदरा दुरेहा धुअगाया छप्पया भमरा ।।(गा. 11) अर्थात् – फुल्लंधुअ, रसाऊ, भिंग, भसल, महुअर, अलि, इंदिदर, दुरेह, धुअगाय, छप्पय और भमर ये भ्रमर के 11 नाम हैं। इस कोश में कुछ ऐसे शब्द भी आये हैं, जो आज भी लोकभाषाओं में प्रचलित हैं। यथा - आलसी के लिए 'मट्ट' शब्द तथा नूतन पल्लवों के लिए 'कुंपल' शब्द का प्रयोग किया है, जो आज भी ब्रज, भोजपुरी आदि में प्रयुक्त होता है। इस दृष्टि से यह कोश-ग्रन्थ भाषा-विज्ञान ही नहीं, अपितु तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं लोक मान्यताओं के अध्ययन में भी सहायक सिद्ध होता है। देशीनाममाला कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र द्वारा ई. सन् 1159 में विरचित प्राकृत के देशी शब्दों का यह शब्द कोश अत्यंत महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है। इस ग्रन्थ की रचना सिद्धहेमशब्दानुशासन के आठवें अध्याय में वर्णित प्राकृत व्याकरण की पूर्ति एवं दुर्लभ शब्दों के अर्थ ज्ञान हेतु की गई है। इस शब्द कोश में 8 अध्याय व 783 गाथाएँ हैं, जिनमें 3978 शब्द संकलित हैं। शब्दों का संकलन अकारादि क्रम में किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र के
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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