________________
यथा
-
एकत्तो रुअइ पिया अण्णत्तो समरतूरनिग्घोसो ।
नेहेण रणरसेण य भडस्स दोलाइयं हिअअम् ।। ( 3.2 टीका 187 )
-
अर्थात् – एक ओर प्रिया रो रही है, दूसरी ओर युद्ध की रणभेरी बज रही है। प्रेम व युद्ध रस के बीच में योद्धा का हृदय दोलायमान हो रहा है।
साहित्यदर्पण
14वीं शताब्दी में कविराज विश्वनाथ ने मम्मट के अलंकारशास्त्र के ग्रन्थ काव्यप्रकाश की आलोचना के रूप में साहित्यदर्पण की रचना की । साहित्यदर्पण में प्राकृत के 24 पद्य उद्धृत हैं, जिनमें से अधिकांश गाथासप्तशती के हैं तथा कुछ स्वरचित भी हैं
अलंकारचिन्तामणि
अलंकारचिन्तामणि के रचयिता दिगम्बर विद्वान् अजितसेन है । उन्होंने 18वीं शताब्दी में इस ग्रन्थ की रचना की है। इसमें पाँच परिछेद है, जिनमें क्रमशः कविशिक्षा, चित्र - अलंकार, यमकादिवर्णन, अर्थालंकार और रसादि विषयों का वर्णन हुआ है ।
इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त पंडितराज जगन्नाथ (17वीं शताब्दी) का रसगंगाधर, अमरचन्द्रसूरि का अलंकारप्रबोध आदि अलंकारशास्त्र के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं, जिनमें काव्य की दृष्टि से प्राकृत के सुन्दर पद्य उद्घृत हैं।
कोश-ग्रन्थ
किसी भी भाषा के तलस्पर्शी अध्ययन के लिए उस भाषा के कोश-ग्रन्थों का अध्ययन अनिवार्य है। प्रत्येक भाषा के शब्द समूह का रक्षण व पोषण कोश साहित्य द्वारा ही संभव है । कोश-ग्रन्थों में क्रमानुसार शब्दों का संग्रह, उनकी प्रकृति, विभिन्न अवयवों तथा अर्थों का विवेचन होता है । शब्दकोश के बिना विद्वानों को अर्थ ग्रहण में कठिनाई होती है, क्योंकि शब्द किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बने होते हैं, बल्कि सामाजिक
1
151