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________________ विभक्त है। प्रथम आठ अध्यायों में प्राकृत छन्दों का विवेचन किया गया है तथा अन्तिम पाँच अध्यायों में अपभ्रंश छंदों का विवेचन है। छंदों को समझाने के लिए उदाहरण प्रायः प्राकृत कवियों की रचनाओं के ही दिये गये हैं। स्वयंभू के पउमचरिउ के अनेक उदाहरण भी इसमें आये हैं। उदाहरण स्वरूप आई गाथाएँ काव्य-तत्त्वों की दृष्टि से समृद्ध हैं। सुभाषितों का भी इनमें प्रयोग हुआ है। यथा - ते विरला सप्पुरिसा जे अभणंता घडंति कज्जालावे। थोअच्चिअ ते अदुमा जे अमुणिअकुसुमणिग्गमा देंति फलं ।। (गा.3.1) अर्थात् – जैसे वे वृक्ष थोड़े ही होते हैं, जो फूलों के निकले बिना फल देते हैं। उसी प्रकार वे सज्जन पुरुष बिरले ही होते हैं, जो बिना प्रलाप किये कार्य पूरा करते हैं। गाहालक्खण गाथालक्षण प्राकृत छंदों पर लिखी गई अति प्राचीन कृति है। इस ग्रन्थ के रचयिता नंदिताढ्य नामक जैन आचार्य हैं। इनका समय ई. सन् 1000 के लगभग माना गया है। इस ग्रन्थ में 96 (कहीं-कहीं 92) गाथाएँ हैं। इनमें प्राकृत के सर्वप्रिय 'गाथा छंद' के भेद व लक्षणों पर विस्तार से विवेचन प्रस्तुत किया गया है। कविदर्पण नन्दिषेणकृत 'अजितशान्तिस्तव' के ऊपर लिखी जिनप्रभ की टीका में कविदर्पण का उल्लेख प्राप्त होता है। इस रचना के मूल कर्त्ता का नाम ज्ञात नहीं है। विद्वानों ने इसका रचनाकाल लगभग 13वीं शताब्दी माना है। इसमें छ: उद्देश हैं। प्रथम उद्देश में मात्रा, वर्ण तथा दोनों के मिश्रण से छंद के तीन प्रकार बताये हैं। द्वितीय उद्देश में 11 प्रकार के मात्रा छंदों का वर्णन है। तृतीय उद्देश में सम, अर्धसम और विषम वर्णिक छंदों का तथा चतुर्थ उद्देश में समचतुष्पदी, अर्धसमचतुष्पदी तथा विषमचतुष्पदी का वर्णन है। पाँचवें उद्देश में उभय छंदों का तथा छठे उद्देश में प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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