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________________ के रूप में इतनी लोकप्रिय थी कि सम्राट अशोक ने उसे राजभाषा घोषित किया तथा उसी जनभाषा में अभिलेख लिखवाकर जन-जन तक अपना संदेश पहुँचाया। करीब ई.पू. 300 से लेकर 400 ई. तक के दो हजार प्राकृत लेख प्राप्त होते हैं, जो इस भाषा के विकास क्रम की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृत भाषा के इस आकर्षण से प्रभावित होकर भास, शूद्रक, कालिदास आदि महाकवियों ने अपने नाटकों में इसे स्थान दिया। लोगों के सामान्य जीवन की अभिव्यक्ति करने वाली इस भाषा में महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तककाव्य आदि रचे जाने लगे। अनेक कथा-ग्रन्थों एवं चरित-काव्यों का भी निर्माण हुआ। इस साहित्य ने प्राकृत भाषा को लम्बे समय तक प्रतिष्ठित रखा। आधुनिक आर्य भाषाकाल से भी जनभाषा प्राकृत का सम्बन्ध जुड़ा रहा। भारत के विभिन्न प्रान्तों में बोली जाने वाली जनभाषाओं को प्राकृत का ही रूपान्तरण माना जाता है। इस प्रकार वैदिक युग, महावीर युग तथा उसके बाद के विभिन्न कालों में प्राकृत भाषा का स्वरूप क्रमशः विकसित होता चला गया। वैदिक युग में यह लोकभाषा थी। महावीर युग में अध्यात्म व सदाचार की भाषा बनी। सम्राट अशोक के काल तक राज्याश्रय को प्राप्त हुई; उत्तरोत्तर विकसित होती हुई यह भाषा काव्य जगत को अनुरंजित करती हुई साहित्यिक भाषा के गौरव को प्राप्त हुई। वर्तमान में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं की जननी मानी जाती है। प्राकृत के विकास के चरण विकास क्रम में जनभाषा प्राकृत काल, स्थान आदि भेदों के कारण नये-नये नामों एवं रूपों को धारण करती गई, लेकिन यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ये सभी भाषाएँ जनभाषा प्राकृत के ही विभिन्न रूपान्तरण हैं और इन सभी भाषाओं का सामान्य नाम प्राकृत ही है। यही कारण है कि नये-नये रूपान्तरों को धारण करने वाली इन जनभाषाओं के आगे प्राकृत शब्द जुड़ा रहा। यथा - प्राथमिक प्राकृत, आर्ष प्राकृत, अर्धमागधी प्राकृत, महाराष्ट्री प्राकृत, अपभ्रंश प्राकृत आदि। प्राकृत भाषा
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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