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________________ शताब्दी के मध्य माना है। दुर्भाग्य से उनकी यह कृति आज अनुपलब्ध है कुवलयमाला, विशेषावश्यकभाष्य, निशीथचूर्णि आदि ग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है । इसका संक्षिप्त रूप तरंगलोला के रूप में प्राप्य है । तरंगलोला तरंगवत कथा का संक्षिप्त सार तरंगलोला के रूप में आचार नेमिचन्द्रगणि ने लगभग एक हजार वर्ष बाद प्रस्तुत किया। इसमें 1642 गाथाओं में तरंगवती के आदर्श प्रेम व त्याग की कथा वर्णित है । समस्त कथा उत्तम-पुरुष में वर्णित है। तरंगवती का राजगृह में आर्यिका के रूप में आगमन होता है। वहाँ आत्मकथा के रूप में वह अपनी कथा कहती है। हंस-मिथुन को देखकर प्रेम जागृत होने पर वह प्रिय की तलाश में संलग्न होती है तथा इष्ट प्राप्ति पर विवाह करती है । अन्त में तरंगवती के वैराग्य व दीक्षा का वर्णन है। यह कथा श्रृंगार रस से प्रारंभ होकर करुण रस में ओत-प्रोत होती हुई, अंत में शांत रस की ओर मुड़ जाती है। आचार्य ने नायिका के वासनात्मक प्रेम का उदात्तीकरण करते हुए आत्मशोधन की प्रक्रिया द्वारा राग को विराग में परिवर्तित किया है । नायिका तरंगवती जैसी प्रेमिका भी मुनिराज के दर्शन से प्रेरित होकर भोग-विलासों से मुक्त होकर सुव्रता साध्वी बन जाती है। श्रृंगार, करुणा व शांत रस से ओत-प्रोत यह कथा - ग्रन्थ पात्रों के आन्तरिक व बाह्य अन्तर्द्वन्द्वों का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। शील- निरूपण की दृष्टि से नायक व नायिका दोनों का चरित्र विकसित है। वस्तुतः यह एक धार्मिक उपन्यास है । वसुदेवहिण्डी वसुदेवहिण्डी का विश्व कथा - ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें अनेक ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक आख्यानों, कथानकों, चरितों एवं अर्ध - ऐतिहासिक वृत्तों का संकलन है । यह ग्रन्थ अति प्राचीन है । इसका रचना काल अनुमानतः चौथी शताब्दी है । प्रस्तुत ग्रन्थ में कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण - वृत्तांत का वर्णन किया गया है। प्रसंगवश अनेक अवान्तर कथाएँ भी इसमें आई हैं । इस ग्रन्थ में रामचरित, कौरव व पाण्डवों के कथानक आदि को भी संक्षिप्त रूप में गुम्फित किया गया है । अनेक 100
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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