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________________ 3 लिए तीर्थंकरों, गणधरों एवं अन्य आचार्यों द्वारा कथाओं का ही अवलम्बन लिया गया है। तप, संयम, त्याग जैसे शुष्क व दुरूह विषयों के विवेचन के लिए विभिन्न दृष्टांत, रूपक, संवाद या कथानक शैली का उपयोग किया गया है । ज्ञाताधर्मकथा इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस आगम-ग्रन्थ में विभिन्न रूपकों व दृष्टान्तों द्वारा जैन तत्त्व - विद्या को जन-मानस तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है । मेघकुमार की कथा जहाँ ऐतिहासिकता को लिए हुए है, वहीं रोहिणीज्ञात कथा में लोककथा के सभी तत्त्व विद्यमान हैं। रूपक शैली में वर्णित कुम्मे, तुम्बी, मयूरी के अंडे आदि कथाओं के माध्यम से धार्मिक उपदेशों का प्रणयन किया गया है । सूत्रकृतांग के द्वितीय खण्ड के प्रथम अध्याय में आया हुआ पुण्डरीक का दृष्टान्त कथा - साहित्य के विकास का अद्वितीय नमूना है । व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में राजकुमार महाबल, स्कन्दकमुनि, जमालि, गोशालक आदि के चरित्र कथानक शैली में ही वर्णित हैं । उपासकदशांग में वर्णित आनंद, कामदेव आदि दस श्रावकों की दिव्य जीवन गाथाएँ चरित्रवाद के विकास के साथ-साथ पारिवारिक जीवन की महत्ता को भी अंकित करती हैं । अन्तकृद्दशासूत्र में वर्णित गजसुकुमाल एवं अतिमुक्तक कुमार की कथा कौतूहल आदि लोक तत्त्वों को समाविष्ट किये हुए है । विपाकसूत्र में अच्छे व बुरे कर्मों का फल दिखाने के लिए 20 कथाएँ आई हैं। इनमें क्रमबद्धता के साथ-साथ घटनाओं का उतार-चढ़ाव भी वर्णित है । कथोपकथन की दृष्टि से ये कथाएँ अत्यंत समृद्ध हैं । उपांग साहित्य में औपपातिक, राजप्रनीय आदि उपांग में भी कहीं-कहीं लोक कथाओं के बीज मिलते हैं । उत्तराध्ययनसूत्र में नमिप्रव्रज्या, हरिकेशी, मृगापुत्र, रथनेमि, केशी - गौतम, अनाथी मुनि आदि के आख्यानों द्वारा संयम, तप, त्याग व वैराग्य जैसे आध्यात्मिक मूल्यों का बड़े ही सुन्दर व मार्मिक ढंग से प्रतिपादन किया गया है। आगम-ग्रन्थों की ये कथाएँ कथा - साहित्य के विकास को ही दर्शाती हैं। आगम साहित्य में उपलब्ध कथाएँ वर्णनों के कारण कहीं कहीं बोझिल प्रतीत होती हैं, किन्तु आगमों पर लिखे गये व्याख्या साहित्य में कथा-साहित्य और भी पुष्पित व पल्लवित हुआ । निर्युक्तियों व चूर्णियों में ऐतिहासिक, धार्मिक, लौकिक आदि कई प्रकार की कथाएँ उपलब्ध हैं । सूत्रकृतांगचूर्ण में आर्द्रककुमार, अर्थलोभी वणिक आदि के सुन्दर कथानक 98
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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