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________________ २६० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा भी जहाँ पर उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों का नाम निर्देश किया है वहाँ पर भी इस सम्बन्ध में कोई चर्चा नहीं है । उत्तराध्ययन के अठारहवें अध्ययन की चौबीसवीं गाथा के प्रथम दो चरण वे ही हैं जो छत्तीसवें अध्ययन की अन्तिम गाथा के हैं। देखिए - ss पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिब्बुडे । विजाचरणसम्पन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ te पाउकरे बुद्धे नायए परिनिब्बुए । छतीसं उत्तरझाए भवसिद्धीयसंमए ॥ उत्तरा० १८।२४ उत्तरा० ३६।२६६ वृहद्वृत्तिकार ने अठारहवें अध्ययन की चौबीसवीं गाथा के पूर्वार्द्ध का जो अर्थ किया है वही अर्थ छत्तीसवें अध्ययन की अन्तिम गाथा का किया जाय तो उससे यह फलित नहीं होता कि ज्ञातपुत्र महावीर छत्तीस अध्ययनों का प्रज्ञापन कर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। वहीं पर अर्थ है- बुद्ध अवगत तत्त्व, परिनिर्वृत्त-शीतीभूत ज्ञातपुत्र महावीर ने इस तत्व का प्रज्ञापन किया है । " उत्तराध्ययन का गहराई से अध्ययन करने से स्पष्ट परिज्ञात होता है कि इसमें भगवान महावीर की वाणी का संगुंफन सम्यक् प्रकार से हुआ है । यह भगवान महावीर की वाणी का प्रतिनिधित्व करने वाला आगम है। इसमें जीव, अजीव, कर्मवाद, षट्द्रव्य, नवतस्त्व, पार्श्वनाथ और महावीर की परम्परा प्रभृति सभी विषयों का समुचित रूप से प्रतिपादन हुआ है। केवल धर्मकथानुयोग का ही नहीं अपितु चारों अनुयोगों का मधुर संगम हुआ है । अत: यह भगवान महावीर की वाणी का प्रतिनिधित्व करने वाला आगम है। इसमें वीतराग वाणी का विमल प्रवाह प्रवाहित है। इसके अर्थ के प्ररूपक भगवान महावीर हैं किन्तु सूत्र के रचयिता स्थविर होने से इसे अंगबाह्य आगमों में रखा गया है। उत्तराध्ययन शब्दतः भगवान महावीर की अन्तिम देशना ही है यह साधिकार तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि १ इत्येवंरूपं 'पाउकरे' ति प्रादुरकार्षीत् प्रकटितवान् 'बुद्ध:' अवगततत्त्वः सन् ज्ञात एव ज्ञातक: जगत्प्रतीतः क्षत्रियो वा स चेह प्रस्तावान्महाबीर एव परिनिर्वृतः कषायानल विध्यापनात्समन्ताच्छीतीभूतः । - उत्तराध्ययन वृहद्वृत्ति पत्र ४४४
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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