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________________ २७८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा करवायी और सपरिवार दल-बल सहित वे भगवान के वन्दन के लिये गये। निषधकुमार भी भगवान को नमस्कार करने के लिए पहुँचा। निषधकुमार के दिव्यरूप को देखकर भगवान अरिष्टनेमि के प्रधान शिष्य वरदत्त ने उसके दिव्यरूप आदि के सम्बन्ध में पूछा। भगवान ने बताया कि रोहीतक नगर में महाबल राजा राज्य करता था। उसकी रानी पद्मावती से वीरंगत नाम का पुत्र हुआ। युवावस्था में वह अनेक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी भोगों को भोगता हुआ विचरता था। एक बार सिद्धार्थ आचार्य उस नगर में आये। उनका उपदेश श्रवण कर वीरंगत ने श्रमण प्रव्रज्या ग्रहण की। उसने अनेक प्रकार के तपादि अनुष्ठान किए और ११ अंगों का अध्ययन किया। इस प्रकार ४५ वर्ष तक श्रमणपर्याय का पालन किया। उसके बाद दो मास की संलेखना कर पापस्थानकों की आलोचना और शुद्धि करके समाधिभाव से कालधर्म प्राप्त करके ब्रह्म नामक पाँचवें देवलोक में देव हआ। वहाँ देवायु पूर्ण करके यहाँ यह निषधकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ है और ऐसी मानुषी ऋद्धि प्राप्त की है। वह निषधकुमार भगवान अरिष्टनेमि के समीप अनगार होकर कालान्तर में निर्वाण को प्राप्त हुए। इसी प्रकार अन्य अध्ययनों में भी प्रसंग हैं। उपसंहार इस प्रकार हम देखते हैं कि वृष्णिदशा में यदुवंशीय राजाओं के इतिवृत्त का अंकन है। इसमें कथा-तत्त्वों की अपेक्षा पौराणिक तत्त्वों का प्राधान्य है। इसमें भगवान अरिष्टनेमि का महत्त्व कई दृष्टियों से प्रतिपादित किया गया है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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