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________________ ६२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ संसार में जिन लोगों ने नेकी के काम किए हैं, उन्हीं की निशाने के रूप में कीर्ति अवशिष्ट रहती है, उन्हीं के नाम का यशोगान होता है। जिन लोगों ने इस दुनिया में आकर मारकाट मचाई. तबाही की, ऐयाशी और लासिता में अपने अमूल्य जीवन को खो दिया, उनकी कीर्ति तो क्या रहती, उनकी अपकीर्ति ही अधिक होती है। कीर्ति के भूखे लोग क्या-क्या करते हैं ? आज संसार में कीर्ति के लिए प्रायः सभी लोग लालायित हैं। वे चाहते हैं, किसी तरह हमें कीर्ति प्राप्त हो जाए, तो जीते-चो स्वर्ग पा जाएं। परन्तु कीर्ति की पात्रता के विना कीर्ति कैसे प्राप्त होगी। अधिकांश लोग कीर्ति के लिए जिस पुण्य-अर्जन की जिन गुणों को प्राप्त करने की जरूरत है, उनके लिए तो पुरुषार्थ नहीं करते सीधे कीर्ति को पाना चाहते हैं। संस्कृत के एक विद्वान् ने सम्मान प्राप्त करने का कलियुगी नुस्खा भी बना दिया है- घटं छित्वा पटं भित्वा कृत्वा येन केन प्रकारेण नरः गदर्भवाहनम् । सम्मानमाप्नुयात् । घड़ा फोड़कर, कपड़ा फाड़कर या गदहे पर चढ़कर जिस किसी भी प्रकार से मनुष्य को सम्मान प्रतिष्ठा अर्जित करनी चाहिए, यों जोड़तोड़ लगाकर कीर्ति और प्रतिष्ठा पाने के कई उपाय वर्तमान युग के मानव ने अपना लिये हैं। कई वाचाल लोग दूसरों के द्वारा किये गये कार्य के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली प्रसंसा या कीर्ति को स्वयं प्राप्त कर लेते हैं, किसी तरह तिकड़मबाजी करते हैं। मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है— गुजरात में गोपालक लोग जंगल में मकना बांधकर रहते थे। वहीं उनके पशु रहते हैं। एक गोपालक परिवार जंगल में मकगत बांधकर रहता था। एक दिन उस जंगल में एक बाघ आया और उस गोपालक के छपरे में बंधे हुए बछड़े पर झपटने लगा। उस समय गोपालक अपने मकान के अन्दर बैठा भोजन कर रहा था। उसकी पत्नी आंगन में कुल्हाड़ी से लकड़ियाँ काट रही थी। उसने ज्यों ही बाघ को बछड़े पर झपटते देखा कि वह फौरन वहाँ पहुँची। उसने बाघ पर कुल्हाड़ी के तीन-चार प्रहार करके उसे घायल कर दिया। बाघ घायल होकर गिर पड़ा। बाघ को देखकर गोपालक धर-थर कांपने लगा और भोजन करना छोड़कर मकान की छत पर चढ़ गया। जब उसकी पत्नी बाघ पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर रही थी, तब उसने डरते-डरते कहा - "शाबाश ! तूने खूब अच्छा किया, बहुत हिमत रखी। अब तीन चोट इसके सिर पर लगाते ही यह खत्म हो जाएगा। डर मत। मैं तेरे पास हूँ।" गोपालक की पत्नी ने बाघ के सिर पर तीन चोट मारी, जिससे उसने वहीं दम तोड़ दिया। गोपालक गर्वस्फीत होकर छत से नीचे उतरा और मानों खुद ने ही मर्दानगी की हो, इस प्रकार अभिमानपूर्वक मरे हुए बाघ की ओर ताकने लगा। फिर उसने बाघ की पूंछ और कान
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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