SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० आनन्द प्रवचन : भाग ६ जिसकी कीर्ति होती है, उस पुण्यवान् व्यक्ति के पुण्य से पुण्यलोक में कीर्ति प्राप्त होती है, जो पाप को फटकने नहीं देती, इसलिए पुण्यकार्यों का आचरण करना चाहिए। आशा है, आप कीर्ति का लक्षण जान गये होंगे। इसी कीर्ति से ठीक विपरीत अकीर्ति या अपकीर्ति है। अपकीर्ति, वदनामी, निन्दा, अप्रतिष्ठा, बेइअती आदि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। बुरे कार्यों, अनि आचरणों या अहितकर कार्यों के करने से अकीर्ति या बदनामी फैलती है। किन्तु कीर्ते में मनुष्य प्रसन्न रहता है, उसमें रुचि रखता है वैसे अपकीर्ती में नहीं। सत्कार्यों से कीर्ति स्वतः प्राप्त होती है। यद्यपि जो व्यक्ति सद्गुणी, परोपकारी मुशील एवं सत्कार्यकर्ता होते हैं, वे कीर्ति चाहते नहीं है, बल्कि कीर्ति को पीठ देकर करते हैं, फिर भी कीर्ति उनके पीछे छाया की तरह दौड़ी आती है, जो मनुष्य छाया को सामने से पकड़ने जाता है, छाया उसकी पकड़ में नहीं आती। लेकिन जब वह छाया को पीठ देकर चलता है, तब छाया उसके पीछे-पीछे स्वतः चलती है। यही बात कीर्तिी के सम्बन्ध में समझिए। ऐसे निःस्पृह, परोपकारी, सुशील एवं सबका भला चाहने व व्यक्ति के पीछे न चाहने पर भी कीर्ति कैसे दौड़ी आती है, इसके लिए एक सच्ची घटना सुनिए अतरोली (अलीगढ़) में बाबा के मुहल में ईश्वरदास नाम के ब्राह्मण रहते थे। वे पण्डिताई का काम छोड़कर पंसारी का वनम करने लगे। ईश्वरदास बहुत बूढ़े थे और बहुत मोटे शीशे की ऐनक लगाते थे। वे शहर भर में ईमानदारी एवं सधरित्रता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी दुकान पर हरदग ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि वे ग्राहक किंस उम्र से किस उम्र तक के रहे होंगे ? आप ठीक-ठीक नहीं बता सकेंगे। सुनिये, उनकी दुकान पर चार वर्ष की उम्र से लेकर १२-१३ वर्ष की उम्र तक के बालकों की भीड़ लगी रहती थी। शायः ही कभी कोई बड़ी उम्र का जबान या बूढ़ा उनकी दुकान पर देखने को मिलता था। अगर मिल जाए तो यही समझिए कि जिस घर से वह सौदा लेने आया है उस घा में या तो कोई बधा है नहीं, या है तो स्कूल या अपने ननिहाल गया होगा। ऐसा न्यों होता था ? उसका कारण यह था कि उनकी दुकान थोड़ी ऊंचाई पर थी। छोटे बच्चे चढ़ ही नहीं सकते थे। बूढ़े बाबा ईश्वरदास उन्हें हाथ पकड़कर चढ़ाते थे। बू होते हुए भी वे शरीर से ताकतवर थे। बच्चे उनकी दुकान पर इसलिए जाते थे कि उनका यह नियम था कि वे बच्चों को हर चीज कुछ ज्यादा तौल कर देते थे, इस ख्याल से कि यह रास्ते में थोड़ा-बहुत गिरा देगा तो घर पहुंचने तक चीज पूरी नहीं पहुंच पाएगी। फिर इनकी माताएँ शिकायत करेंगी और दुकान की बदनामी होगी। बच्चों को सांश देते समय बच्चा कहे या न कहें, अपने
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy