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________________ सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ ७६ आएंगे, मरने के बाद ?" सेठानी बोली-“मेरे पति जीवित हैं, तब तक मैं सौभाग्यचिन्ह एवं इन दो गहनों को नहीं दे सकती।" लोभाविष्ट ढोली ने क्रोधी सेठानी से कहा-"आपको मरना ही है तो मैं कुँए में पड़ने की अपेक्षा एक सरल उपाय बताता हूं।" सेठानी बोली- "वह कौन-सा है ?" ढोली ने कहा- देखिये, नीचे मेरा यह ढोल रखकर पेड़ की डाल से बंधी हुई रस्सी को गले में कस कर बाँध लीजिए, फिर पैर से ढोल को ठेलकर लटक जाइए। एक मिनट में प्राण निकल जाएंगे।" सेठानी ने कहा-"तू जरा पहले मुझो बता तो सही।" लालची ढोली ने सोचा यदि मेरे बताने से यह गले में फांसी लगाकर मर जाएगी, तो ये दोनों गहने भी इसके मरने के बाद मैं ले सकूँगा। अतः उगाने नीचे ढोल रखा। फिर उस पर पैर रखकर अपने गले में रस्सा लगाया। दुर्भाग्य से रस्सा गले में डालते ही बह ढोल खिसक गया। गले में फाँसी लगने से वह आ आ करने लगा, थोड़ी ही देर में उसकी जीभ बाहर निकल आई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। ढोली की अकस्मात मौत का यह नजारा देखकर सेठानी घबराई उसके मुँह से सहसा उदगार निकले-“अरे बाप रे ! यह स्त्यु तो बड़ी भयंकर है, यह तो मुझ से नहीं हो सकेगा।" अतः सेठानी ने चुपचाप ढाली को दिये हुए गहने लेकर पहन लिये और वहाँ से घर की ओर चल पड़ी। अब उसके क्रोध का नशा उतर गया था। आत्महत्या करने की ललक भी खत्म हो गई। चुपचाप शर्मिन्दा होती हुई-सी घर में घुसी और घर के काम में लग गई। शाम को उसने अपने पति से क्षमा मांगी और वचनबद्ध हो गई कि अब भविष्य में कभी क्रोधन करूँगी। बन्धुओ ! क्रोध के आवेश का परिषगम कितना भयंकर है। क्रोधावेश में सबुद्धि तो कोसों दूर चली जाती है। क्रोध, द्वेष, रोष और वैर-विरोध के प्रसंग पर जो सौम्य शान्त, गम्भीर और स्थिर रहता है, उसी की बुद्धि स्थिर रहती है, म्ही शान्ति से विकट समस्या को सुलझा सकता है। ___महामना पं० मदनमोहन मालवीय उन देनों वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय में रहते थे। विश्वविद्यालय के कुछ छात्र एक दिन नौकाविहार कर रहे थे। उनकी कुछ असावधानी के कारण नौका को काफी क्षति पाच गई। अब वह इस स्थिति में न रही कि उससे काम लिया जा सके। बेचारा मल्लहः उसी के सहारे जीविकोपार्जन करके अपने ६ सदस्यों के परिवार का पेट पालता था। छात्रों की इस उच्ड्रंखलता पर मल्लाह को बहुत गुस्सा आया। वह आवेश को न रो सका और भलीबुरी गालियां बकता हुआ मालवीयजी के निवासस्थान पर पहुंच गया। उस समय मालवीयजी के निवासस्थान पर कोई आवश्यक मीटिंग चल रही थी। विश्वविद्यालय के सभी वरिष्ठ अधिकारी तथा काशी के प्रायः सभी गण्य मान्य व्यक्ति वहां उपस्थित थे।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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