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आनन्द प्रवचन : भाग ६
अनेक मनुष्य बहुत-सा जानते हैं, परन्तु वे मा ज्ञान का उपयोग करने में बड़े मूर्ख होते
सचमुच बुद्धिमान, विशेषतः स्थिरबुद्धिशील व्यक्ति केवल पढ़ाई-लिखाई से नहीं होता। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम ही इसमें मूल कारण है। आप जानते हैं कि मति श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के आवरण जितनाजितने हटते जाते हैं, उतनी उतनी धुद्धि निर्मल, स्फुरणाशक्ति एवं निर्णयशक्ति से युक्त बनती है। इस सम्बन्ध में मुझे एक रोचक उदाहरण याद आ रहा है
दिल्ली के बादशाह का साला, जो महक की ड्योढ़ी पर नियुक्त था, सामान्य वेतन पाता था, जबकि बीरबल बजीरेहिंद था, वह भारी वेतन पाता था। यह बात बेगम, को बहुत खटकती थी कि मेरा सगा भाई एक मामूली सिपाही की भाँति नौकरी पाता है और एक हिन्दू बीरबल बहुत ऊँचे पद पर है । एक दिन मौका देखकर बेगम ने बात चलाई-"खुदाबंद ! आपके राज्य में बड़ा अन्धेर है।" बादशाह-"वेगम ! ऐसी बात नहीं है। यदि कोई अव्यवस्था तुम्हारे देखने में आई हो तोकहो, मैं उस पर अवश्य ध्यान
बेगम वोली-“जहाँपनाह ! देखिये, मेरा सगा भाई, आपका साला बहुत ही मामूली नौकरी पर है। क्या आप मेरे भाई को ऊँचा पद नहीं दे सकते। उधर बीरबल भारी वेतन पा रहा है। उसके घर में शाही ठाठ लग रहे हैं। योग्यता और बुद्धि तो उच्च पद पर जाने से चमक उठती है। आपके राज्य में यह अंधेर नहीं तो क्या है ? आप इस पर ध्यान दीजिए।"
मुस्कराते हुए बादशाह ने कहा- "अछा ! तुम्हें अपने भाई की बड़ी चिन्ता है। मैं मानता हूँ कि कि वह तुम्हारा भाई और मेरा रमला है, पर उसमें जितनी योग्यता और बुद्धि है, उसके अनुसार उसे काम सौंपा हुआ है। मिरबल, जो भारी वेतन पा रहा है, वह उसकी बुद्धि और योग्यता के अनुरूप है। उसकी बुद्धि बड़ी-बड़ी समस्याएं हल कर देती है।"
बेगम बोली-''मैं नहीं मान सकती कि मेरे भाई में इतनी लियाकत नहीं है। यह तो सिर्फ हजूर का ख्याल है।"
"बादशाह ने कहा--"अच्छा, मैं तुझे कभी उसकी योग्यता का परिचय करबा दूंगा और साध ही वीरबल की योग्यता का मैं !"
बेगम-"अच्छा हजूर ! मैं भी इतनेफर्क का कारण जान लूंगी।"
एक दिन बादशाह महल में आए जो ड्योढ़ी पर तैनात साले साहब ने सलाम किया। वादशाह अन्दर पहुँचे कि उनके कानों में वाजों की आवाज आई। सोचा---अभी रात के दस वजे हैं। आज अच्छा मौका है, बेगम को अपने भाई की योग्यता और बुद्धि का परिचय करवा दूं, ताकि रोज का खल्बट मिट जाए। बादशाह ने तुरन्त आवाज लगाई-"इयोढ़ी पर कौन है ?" साला मौरन अन्दर आया और "जी हजूर ! हाजिर हूँ।" कहकर सामने खड़ा रहा। बादशाह ने कहा-"जरा पता लगाओ तो ये वाजे कहाँ बज रहे हैं?"