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________________ सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ ६१ दिया। लेकिन जब परिस्थिस्ति एकदम प्रतिकून होने लगी, तब पृथ्वीराज की मोहनिद्रा भंग हुई। लेकिन तब बहुत विलम्ब हो चुका था, अवसर हाथ से जा चुका था। फलतः राजा पृथ्वीराज की करारी हार हुई। देल्ली का राज्य शहाबुद्दीन गौरी के हाथ में आ गया। तब से भारत में मुस्लिम शासन की नींव पड़ गई। राजा जयचन्द को भी इस दुर्बुद्धि का भयंकर परिणाम भोगना पड़ ॥ उसके राज्य को भी सुलतान गोरी ने चढ़ाई करके जीत लिया। उसे भी मुस्लिम सत्ननत के अधीनस्थ हो कर रहना पड़ा। यह है मारकबुद्धि का विनाशक परिणगत ! परन्तु तारकबुद्धि विनाशक के बदले कल्याणकारिणी और सर्जक होती है। मारझबुद्धि नियन्त्रणरहित होती है, जब कि तारकबुद्धि पर धर्म और अध्यात्म का अंकुश झोता है। तारकबुद्धि का पलायन : मारकबुद्धि का आगमन यह ठीक है कि मनुष्य शारीरिक बल से नहीं, बुद्धिबल से ही अपनी जीवन-यात्रा सुखद एवं सुचारु रूप से चलामा आ रहा है। आगे चलकर मानव की बुद्धि का पर्याप्त विकास तो हुआ, लेकिन उस पर अंकुश न रह सका। यों तो बड़े-बड़े युद्धों सा संचालन एवं राज्य पर नियन्त्रण बुद्धिबल से होता है। राष्ट्रों का नेतृत्व एवं शासन-व्यवस्था भी बुद्धिशक्ति पर निर्भर है। व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, व्यवहार उपाय और योजनाएँ सब बुद्धि के अधीन चानती हैं। तात्पर्य यह है कि संसार में जो कुछ भी सृजनात्मक या ध्वंसात्मक क्रियाकलाग दिखाई देता है, वह सब का सब बुद्धि द्वारा संचालित, प्रेरित और नियन्त्रित है। बुद्धि मानव के लिए एक अनुपम वरदान है | लेकिन भस्मासुर की तरह बुद्धि के इस वादान को पाकर मानव आज संसार का सर्वनाश करने पर तुला हुआ है। भस्मासुर की पौराणिक कहानी आपने सुनी ही होगी-भस्मासुर बड़ा शक्तिशाली असुर था। उसके मन में स्फुरणा हुई कि का तप करके अपने को अजेय बना ले। फलतः उसने तप की योजना बनाई और हिमालय पर चला गया। भस्मासुर शरीर से भी बली था, मन से भी, सिद्धि प्राप्त करने की तीव्र लालसा भी थी। परन्तु तप में संलग्न होने से पूर्व उसकी बुद्धि परिस्कृत ना हुई थी, इस कारण कई वर्षों तक तप करने से शंकर जी ने प्रसन्न होकर जब उसे रदान माँगने को कहा, तब उस दुर्बुद्धि ने यह वरदान माँगा कि 'मैं जिसके सिर पर हाथ रखू, वह भस्म हो जाय |' असुर आखिर असुर ही रहा, तामसी बुद्धि से पिंड न छुड़ा प्रका। महादेव जी से वरदान पाते ही वह गर्वोन्मत्त हो उठा। उसकी सद्बुद्धि तभी पलायित हो गई, वह पार्वती को पाने के लिए अपने आराध्य महादेव जी को ही भस्म करने के लिए तत्पर हो गया। विष्णु जी को पता लगा तो वे महादेव को बचाने के लिए अवनमोहिनी सुन्दरी का रूप बनाकर आए और भस्मासुर से कहने लगे यदि तुम मुझे नत्य करके प्रसन्न कर लोगे तो मैं तुम्हारी बन जाऊँगी। साथ ही उन्होंने सिर पर हा रखकर नृत्य करने का प्रस्ताव रखा ।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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