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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ ५६
पशु-पक्षियों में यह बुद्धि नहीं होती कि वृद्धावस्था में एक निष्ठावान साथी की जरूरत है; जबकि मनुष्य विधिवत् विवाह करके साथी जुटा लेता है। मनुष्य में संस्कृति और धर्म की समानता होने पर संगठित हो जाने की बुद्धि है; पशु-पक्षियों में ऐसा नहीं है। उनका बच्चा सयाना होते ही कहीं दूर जला जाता है और वे असहाय सा जीवन बिताते हैं, जबकि मनुष्य का बच्चा बुढ़ापे में भी अपने माता-पिता के साथ रहता है, उनकी सेवा करता है।
मानवीय बुद्धि का विकास
आदिमयुग का मानव न तो हिरन की तरह चौकड़ी भरना जानता था, न बंदर की तरह चालाक था, न जंगली जानवरों से बचने के लिए उसके पास हथियार थे और न ही पालतू जानवर। उसकी जीवनयात्रा बड्ड़ी कठिन थी। परन्तु मनुष्य के पास एक विलक्षण सहारा था - बुद्धि का । धीरे-धीरे वृद्धिबल से उसने अपनी जीवनयात्रा सरल बनाई । जीवन-यापन की सामग्री जुटाई, आग जलाना, रसोई बनाना, खेती करना, पशुपालन करना एवं परिवार तथा जाति के रूप में रहना सीखा। फिर तो उसने बड़ी-बड़ी इमारतें और पिरामिड बनाए, बड़े-बड़े बाँधों और पुलों का निर्माण किया; जल, स्थल और नभ के रहस्यों की खोज को हवा, पानी और नक्षत्रों का अध्ययन शुरू किया; अपने बुद्धिबल से अनेक नये-नये यंत्रों का आविष्कार किया; दूरदर्शन, दूरश्रवण और दूरप्रेषण एवं द्रुतगमन के साधन बनाए। मनुष्य ने अतीत से प्रेरणा लेकर जीवों के रहन-सहन एवं इतिहास के अनुभवों के आधार पर दूरगामी निष्कर्ष निकालने की क्षमता प्राप्त की। इस क्षमता के कारण वह नई सर्वांगीण जीवन पद्धति विकसित कर सका।
वर्तमान वैज्ञानिक युग में तो मानवबुद्धि अनेक भौतिक चमत्कारों से युक्त हो गई है । असम्भव जैसे कार्य आज सम्भव होते दिखाई दे रहे हैं। मनुष्य की बुद्धि आज जीवन-मृत्यु के रहस्यों को खोज निकालने पर तुली हुई है। संसार के महत्त्वपूर्ण पंच भौतिक तत्त्वों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अफी आज्ञाकारी बना रही है। बुद्धि के बल पर आज मानव प्रकृति की पराधीनता से मुक्त होने तथा स्वनिर्भर या स्वच्छन्द बनने का प्रयत्न कर रहा है। वर्तमान विज्ञान की दौड़ को देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब कि मानव चाहे जब इच्छित ऋतु को उत्पन्न कर ले और मनमाना वातावरण निर्माण कर ले ।
दूसरी ओर कुछ बुद्धिमान मानवों ने सृष्टि तथा जीवन और जगत् के रहस्य की खोज की। उन्होंने सृष्टि क्या है ? उसे किसने बनाया है ? मनुष्य क्या है ? अन्य जीव क्या हैं ? मृत्यु के बाद यह जीव कहाँ जला जाता है ? एक मानव अत्यन्त दुखी और दूसरा अत्यन्त सुखी क्यों हैं ? एक विद्वान और एक मूर्ख, एक धनवान और दूसरा निर्धन आदि विषमताएँ संसार में क्यों है ? इन और ऐसे ही प्रश्नों पर अपनी