________________
५८
आनन्द प्रवचन : भाग ६
करना उन्हें भी आता है। वे विशिष्ट कला न स्यानते हों तो न सही, पर अपने रहने के लिए कोई न कोई आश्रय स्थान बना ही लेते हैं। बया पक्षी का घोंसला तो इंजीनियरों की बुद्धि को भी मात करता है। मकड़ी अपना जाला ऐसे व्यवस्थित बनाती है कि कुशल भवन निर्माता भी उसे देखकर दाँतों तले अंगुली दबा लेता है। भौंरा, ततैया आदि भी अपना छोटा-सा सुन्दर घरौंदा बना होते हैं। मकड़ी किसी ऊँची दीवार, वृक्ष या बिजली के खंभे पर चढ़कर देखती है कि वा किधर चल रही है। फिर उधर ही बिना माध्यम के उड़कर चलती हुई दो ऐसे सपनों को जोड़कर आलीशान हवाईमहल तैयार कर लेती है, जैसा आज तक मनुष्य नहीं कर पाया।
बाह्य दृष्टि से देखा जाय तो मनुष्य और अन्य पंचेन्द्रिय प्राणियों की शारीरिक रचना में कोई खास अन्तर नहीं है। दो हाथ, पैर मनुष्य के भी होते हैं। पशुओं के भी। पशु-पक्षी आगे के दो पैरों को हाथ के तौर पर काम में लाते हैं। नाक के दो नथुने, दो आँखें, दो कान, एक मुँह, दाँत, मस्तक, पेट, अस्थिपिंजर, चमड़ी, बाल, जननेन्द्रिय आदि मनुष्य के अतिरिक्त अन्य कौवों में भी पाये जाते हैं। अन्तर बहुत थोड़ा है। बनमानुष की चेष्टाएँ भी मनुष्य से मिलती-जुलती हैं। इन समानताओं के आधार पर ही मनुष्य को सामाजिक पशु (Man is the social animal) कहा जाता है। किन्तु जिस कारण मनुष्य को भिन्न श्रेणी का सामाजिक पशु माना जाता है, वह उसकी बुद्धिशीलता है।
___मनुष्येतर प्राणियों में जो बुद्धि होती है, वह दूरगामी नहीं होती, उसकी सूझबूझ तात्कालिक और उसी क्षेत्र में होती है, का सर्वांगीण नहीं होती, पशु-पक्षियों में सामाजिकता नहीं होती। वे अपनी परम्परा से जिस ढर्रे से चलते आते हैं, उसी ढर्रे से चलते जाते हैं, उसमें कोई भी परिवर्तन नहीं करते, जबकि मनुष्य की बुद्धि ने हजारों-लाखों वर्षों में अनेक परिवर्तन किये हैं। करता चला आ रहा है और भविष्य में भी करेगा। पशु-पक्षियों में दूसरे की प्रेरणा # चलने की बुद्धि होती है, उनमें स्वतन्त्र बुद्धि नहीं होती, दूसरे के इशारों का ज्ञान प्रायः नहीं होता। जैसा कि बुद्धि का फल बताते हुए नीतिकार कहते हैं
उदीरितोऽर्थः पशुमाऽपि गृह्यते। हयाश्च नागाश्च वहन्ति नोदिताः।। अनुक्तमप्यूहति पोण्डतो जनः।
परेंगितज्ञानफला है बुद्ध्यः।।।' "कही हुई बात तो पशु भी ग्रहण कर लेता है, प्रेरित करने पर तो हाथी और घोड़े भी चलते हैं, किन्तु बुद्धिमान व्यक्ति बिना कही हुई बात भी जान लेता है, क्योकि दूसरे के इंगित को जान लेना ही बुद्धि का फल है।" १ हितोपदेश २/४६