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________________ ४६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ ऊटपटांग बातें ही सोच सकता है। दूसरों पर दोषारोपण करके अपने दिमाग में निहित तेजोद्वेष और क्रोध को ही वह बढ़ा सकता है। अपनी मनः स्थिति जिन्होंने ऐसी असन्तुलित बना ली है, वे उद्वेग की अशान्त लहों के ही थपेड़े खाते रहते हैं। उनकी अधिकांश शक्तियां कुढ़न, जलन, छिद्रान्वेषण, दोषारोपण, प्रतिशोध, ईर्ष्या, निन्दा आदि में ही व्यय होती रहती हैं। प्रगति पथ पर बढ़ने के लिए धैर्य, गाम्भीर्य, शान्ति, क्षमा, सहिष्णुता, सन्तोष आदि जिन गुणों की आवश्यकता है, वे गुण असन्तुष्ट व्यक्तियों से कोसों दूर पलायन कर जाते हैं और वह अपने सामने अपने मानस-मंच पर एक के बाद एक दुर्भाग्य के दृश्य उपस्थित होते देखता रहता है। असंतुष्ट व्यक्ति ओछे दिल-दिमाग का होता है। वह प्रगति पथ पर बढ़ने की तैयारी में अपनी शक्ति को लगाने की अपेक्षा उसे कुढ़न, अविश्वास, अधैर्य आदि दुर्गुणों के इशारों पर चलकर नष्ट करता रहता है। इस संसार की रचना कल्पवृक्ष सम नहीं हुई है कि जो कुछ हमचाहें, बिना ही परिश्रम, गुण, योग्यता और कार्यक्षमता के मिल जाया करे। यह कर्म-भूमि है, भगवान ऋषभदेव के युग से प्रारम्भ हुई है। यहाँ हर किसी को जन्म मिलता है, अपने पूर्व पुण्य-पापों के आधार पर, परन्तु कर्म करने, अपनी प्रगति और आत्मिक-विकास के लिए पुरुषार्थ करने का सबको अवकाश एवं अवसर थोड़े-बहुत रूप में मिलता है। परन्तु जो उस अवसर को कुढ़न, जलन, द्वेष, ा , प्रतिशोध, निन्दा आदि दुर्गुणों मे ही समाप्त कर देता है, वह किसी भी महत्वपूर्ण श्यान पर नहीं पहुंच पाता। दुनिया एक प्रयोगशाला है। यहाँ हर किसी को परीक्षा की अग्नि में तपाया जाता है। जो इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है। उसे ही विश्वस्त एवं प्रामाणिक माना जाता है। जो व्यक्ति धैर्यपूर्वक अपनी विशेषता और योग्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं वे ही आगे बढ़ पाते हैं। दुनिया ऐसे ही लोगों का आदर करती है, उन्हें ही सहयोग देती है, प्रगति के द्वार में प्रवेश करने की अनुमति देती है। परन्तु जो कुढ़न और असन्तोष की आग में रात दिन मन ही मन जलता रहता है वह खाक होकर कूड़े के ढेर पर फैंकने योग्य बन जाता है। दुनिया उसे कुपात्र समझकर सम्मान के स्थान पर न पहुंचाकर कूड़े के स्थान पर पहुंचा देती है। एक गांव में एक भट्ट जी थे। वे भीख मांगा करते थे। ब्राह्मण होने के नाते वे भीख मांगना अपनी बपौती समझते थे। एक दिन गांव के एक सेठ ने उन्हें भीख मांगते देखा तो कहा--"भट्ट जी ! हमारे गांक में कोई भिखारी नहीं है। आप क्यों भीख मांगते हैं ? क्या दुख है आपको ?" भट्ट जी बोले-“सेठ ! मेरे पास कुछ धन नहीं, कोई नौकरी नहीं, कोई धंधा नहीं, भीख न मांगू तो क्या करूं? दो आदमियों का पेट कैसे भरूं ?" फिर और भी भविष्य के कई दुःखों का वर्णन भट्ट जी ने कर दिया। सेठ को उन पर दया आई। वे बोले--"अच्छा, हमारे यहाँ से रोज दो आमियों का सीधा ले जाना और अपनी
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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