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मूल स्त्रोत
.. किं रुरणं तु सच्चं, किं सुमह । । ४ । ।
शरण श्रेष्ठ क्या ? सत्य लोक में
दुख क्या ? लोभ, नोष में सुख है । । ४ । ।
बुद्धी अचंडं भयए विनीयं,
क्रुद्धं कुसीलं भयए कित्ती ।
संभिन्नचित्तं भयए अलच्छी, सच्चे ठियंतं भयए सिरीयं । । ५ । । बुद्धि शान्त होती विनीत की कुद्धकुसील अपयश का भागी । भग्न-चित्त से श्री इसी है सच्चे से लक्ष्मी अनुरागी । । ५ । ।
चयंति मित्ताणि नरं कनग्धं,
चयंति पावाई मुणि जतं ।
चयंति सुक्काणि सराणि हंसा, चएइ बुद्धी कुवियं मासं । । ६ । । नर कृतघ्न को मित्र जागते
यलवान मुनि को त्यों पाप ।
हंस तज देते शुष्क सीवर बुद्धि क्रुद्ध को जी आप || ६ ||