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आनन्द प्रवचन : भाग ६
दुःख निवारण के लिए लोभवृत्ति दूर करो।
अतः सौ बातों की एक बात है, दुःखों से मिण्ड छुड़ाने और दुःखी जीवन से दूर रहने के लिए आप सभी लोभत्याग या लोभविजा का अभ्यास करें। लोभ वृत्ति नहीं होगी तो किसी प्रकार का दुःख नहीं रहेगा। गरिबी में भी सुख और आनन्द रहेगा, लोभ रहने पर अमीरी में भी दुःख रहेगा। इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा
'दुःखं हयं जस्स न हाई लोहो' जिसके मन में लोभ नहीं होगा, उसका दुःख नष्ट हो जाएगा। गौतम ऋषि ने दुःखी जीवन से बचने के लिए ही कहा है-"लोहो, दुहो कि ?"