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________________ ४०२ आनन्द प्रवचन : भाग दशाश्रुतस्कन्ध (दशा ४) में गुरु के इति गुणवान शिष्य की ४ विनय प्रति पत्तियाँ (कर्तव्यपालन विधियां) बताई गई हैं (१) उपकरणोत्पादनता, (२) सहायकता, (३) गुणानुवादकता, और (४) भारप्रत्यवरपोहणता। इनके अर्थ संक्षेप में क्रमशः ये हैं-गण में नये उपकरणों को उत्पन्न करना, पुराने उपकरणों की रक्षा करना, कम हों तो पूर्ति करना और साधुओं में यथाविधि वितरण करना उपकरणोत्पादनता है। गुरु आदि के अनुकूल बोलना, अनुकूल चर्या करना, दूसरों को सुखसाता पहुंचाना, गुरु आदि का कार्य सरलता से करना, समय आने पर गुरु को भी ज्ञान-दर्शन चारित्र के पालन में सहायता करना सहायकता है। गण, गणगत योग्य साधुओं तथा गणी का यथातथ्य गुणानुवाद करना, इनका गुणानुवाद करने वाले को धन्यवाद देना और रोगी, वृद्ध, ग्लान एवं विद्वान आदि की उचित सेवा-सुश्रुषा करना, गुणानुवादकता है। क्रोध आदि दुर्गुणों के कारण जो साधु-साध्वी गण से पृथक हो रहे हों, या हो गये हों, उन्हें युक्ति, सान्त्वना एवं धैर्य से समझा-बुझाकर संयम में स्थिर करना, नवदीक्षित को आचार-विचार समझाना, रुग्णावस्था में सहधर्मियों की सेवा करना, गण में कदाचित् परस्पर कलह उत्पन्न हो जाय तो निष्पक्षता से क्षमायाचना करवाकर उपशान्त करना भार प्रत्यवरोहणता है। ये चारों गुणवान सुशिष्य के कर्तव्या हैं। इन कर्तव्यों एवं व्यवहारों पर से सुशिष्य की परख गुरु कर लेते हैं। ज्ञातासूत्र में ऐसे ही एक गुणवान आदर्श शिष्य का उदाहरण मिलता है, जिसने संयम मर्यादाओं के अतिक्रमणकर्ता अपने गुरु की अनन्य सेवा-भक्ति करके उन्हें सत्पथ पर मोड़ दिया था। उनका नाम था पन्थक गुनि। वह शैल राजर्षि का शिष्य था। शैलक राजर्षि ५०० शिष्यों के गुरु थे। वे इलकपुर के राजा थे, किन्तु शुक नामक जैनाचार्य के प्रतिबोध से विरक्त होकर मंडूक नामक युवराज को राजगद्दी सौंपकर अपने ५०० कर्मचारियों सहित उन्होंने मुनिदीक्षा धारण कर ली। ग्रामों-नगरों में विचरण करते हुए एक बार शैलक राजर्षि अपने भूतपूर्व राज्य शैलकपुर पधारे। पूर्वकर्मोदयवश उनका शरीर व्याधि से जीर्णशीर्ण हो गया था। मंडूक १. तस्सेवं गुणजाइस्स अंतेवासिस्स इमा चउब्बिोचणयाउ बत्ती भवइ तं जहा उवगरण उप्पायणया, सहिलंया, वनसंजरणया, भारपञ्चोकहणया दशात्रुतस्कंध दशा०
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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