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आनन्द प्रवचन : भाग ६
जैसे तपे हुए तवे पर दो दो चार चार छींटे दिये जाएं तो उससे वे छींटे ही जल जाते हैं, तवे पर कोई असर नहीं होता। इसी प्रकार क्रोधादितप्त विक्षिप्तचित्त रूपी तवे पर भी उपदेश के छीटों का कोई प्रभाव न पड़ता, वे शब्दों के छींटे स्वतः ही सूख जाते हैं, ऊपर-ऊपर ही उड़ जाते हैं, विक्षिप्तचित्त व्यक्ति के दिलदिमाग में नहीं पहुंचते, टिकने का तो सवाल ही कहां? विक्षिप्तचित्त बदलता रहता है
भगवती सूत्र में एक प्रश्नोत्तर है—''कौन पलटता है ?" तो वहां उत्तर इस प्रकार दिया गया है- “जो अस्थिर है वह पलटता है, परिवर्तित हो जाता है।"
___आपका चित्त विक्षिप्त होता है,तो अस्थिर हो ही जाता है, वह किसी एक विषय पर टिक ही नहीं पाता,विषय को बार-बार बदलता रहता है, इसका कारण है—उसके चित्त में सर्वत्र कम्पन है, इन्द्रियों और अन्य अवयवों में भारी कम्पन है। पूर्ण निष्कपता स्थिरचित्त की निशानी है जो बदलती नहीं। किन्तु अस्थिरचित्त व्यक्ति कम्पनों का तूफान आने से अपने आत्मस्वरूप के या तत्रज्ञान के कथन को दूर से ही फेंक देता है, वह अपने दिल-दिमाग के निकट आने ही नहीं देता। अस्थिरचित्त व्यक्ति कैसे बदलता रहताहै ? इसे एक उदाहरण द्वारा समझा दूं
युद्ध के मोर्चे पर नियुक्त सैनिक ने मोचा यह भी कोई जिंदगी है। हर जगह रक्तपात और बन्दूकों की धांय-धांय । वह सैनिक सेवा से भागकर गांव आ पहुंचा। वहां उसने खेती करनी शुरू की। यहां भी जार संकट । समय पर बीज और खाद की व्यवस्था नहीं हो पाती, फसल पककर तैयार होती तो गांव के महाजन अपना पैसा वसल करने के लिए खलिहान पर आ धमलते। न रात को चैन. न दिन को आराम। कभी जंगली पशुओं से फसल की रक्षा करने के लिए रात-रात भर घर से बाहर रहना
और कभी हरी-भरी फसल को ओले, पाने से हानि पहुंचती तो वह सिर पर हाथ रखकर भाग्य को कोसने लगता। उसे खेती की झंझट बिलकुल पसंद न आई। गांव के नीरस लगने वाले जीवन को छोड़कर वह शहर की चकाचौध में आगया, ले लिया एक मकान किराये पर । कारखानों में नौकरी कर ली। नियमित समय पर जाना और ८ घंटे कड़ी मेहनत करके घर लौटना । तिने परिश्रम के बाद उसका शरीर थककर चूर-चूर हो जाता, कहीं घूमने-फिरने की त्च्छा न होती। महीने के बाद बंधी बंधाई तनख्वाह की रकम मिलती, उसी पर गुजारा करना पड़ता था। कुछ समय आराम से बीता, फिर चित्त डगमगाने लगा। शहरी जीवन का आकर्षण समाप्त हो गया। एक रात को स्वप्न में सुनाई दिया--"यों विक्षिप्तांचेत्त बनकर जीवन से भागने वाले को कहीं
१. अथिरे पलोट्टई, नो थिरे पलोट्टइ
-भगवती सूत्र ११६