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________________ ३७० आनन्द प्रवचन : भाग ६ साथ ही स्वामी विवेकानन्दजी से किती ने कहा- "स्वामी जी ! यह आदमी बहुत बड़ा जादूगर है। यह दूसरे के मन की बात को भी जान लेता है, बड़ा चमत्कारी है।" अतः स्वामीजी ने उससे कहा--- "अगर तुम मुझे अपना चमत्कार दिखाओ तो मैं तुम्हारे बच्चे के सिर पर हाथ रख सकता हूं।" उसने यह शर्त सहर्ष स्वीकार की। स्वामीजी ने चित्त को बिलकुल एकाग्र करके प्रबल संकल्प के साथ उस बच्चे के सिर पर हाथ रखा कि थोड़ी ही देर में बच्चा ठीक हो गया। अब जादूगर का नम्बर आया। उसके कहने पर स्वामीजी ने उससे काजे गुलाब के फूल, सेव और कुछ वस्तुएं मांगी। स्वामी जी एवं अन्य लोग यह देखक चकित हो गए कि थोड़ी ही देर में उसने अपनी कंबल से एक-एक करके सब चीजें निकाल कर दे दीं। वह व्यक्ति संस्कृत नहीं जानता था। स्वामीजी ने संस्कृत का एक लोक अपने मन में सोच लिया। जब उससे पूछा गया कि स्वामीजी ने अपने मन में क्या सोचा है ? तो उसने तपाक से कहा-"अपनी जेब में पड़ा कागज निकालिए।" स्वामीजी ने जेब से वह कागज निकालकर देखा तो वही श्लोक उसमें अंकित था, जो स्वामीजी ने मन में सोचा था। तो आश्चर्यचकित लोगों को स्वामी जी ने बताया कि सब चित्त की एकाग्रता से किये जाने वाले प्रबल संकल्प का चमत्कार है। चित्त की एकाग्रता से बड़े-बड़े कार्य सिद्ध हो जाते हैं। एकाग्रचित्त से होना वाला संकल्प : सोमरि शक्ति विक्षिप्तचित्त से कोई संकल्प नहीं हो सकता, क्योंकि बिखरा हुआ चित्त तो डांवाडोल होता है, उसमें कोई भी शुभ विचा अधिक देर टिक नहीं पाता, और संकल्प में तो विचार बीज का अधिक देर तक टिलना आवश्यक है। कोई भी बीज बोने पर जब अधिक समय तक टिकता है, तभी वार जमता है, और उसमें से अंकुर फूटते हैं, इसी प्रकार चित की भूमि में विचारों के बीच अधिक देर तक टिकेंगे, तभी वे संकल्प का रूप लेंगे। विक्षिप्त चित्त-भूमि में विचारों के बीफ को काम-क्रोधादि दुर्विकल्पों की आंधियां उड़ा ले जाती हैं, वे जरा-सी देर टिक पार्क हैं, तब उनमें से संकल्प का अंकुर कैसे प्रस्फुटित होगा? और संकल्प ही सिद्धि के लिए सर्वोपरि शक्ति है, जो कि एकाग्रचित्त भूमि में ही पैदा हो सकता है। बैज्ञानिकों ने जितने भी नव-नवीन आविष्कार किये हैं, सामाजिकों ने जितने भी सुधार या परिवर्तन किये हैं, या जिनते पो मानव कल्याण के उत्तम कार्य होते हैं, विद्याएं, कलाएं, शिल्प या अन्य ज्ञान प्राप्त किए जाते हैं, वे सब एकाग्र चित्त-भूमि में होने वाले संकल्प के ही शुभ परिणाम हैं। ___ एकाग्रचित्त समुत्पन्न संकल्प ही सर्वोगरि शक्ति है, इसे समझने के लिए तथागत बुद्ध से हुए एक संवाद का उल्लेख करना यहां उपयुक्त होगा
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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