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________________ विक्षिप्तचित्त कोकहना विलाप ३६६ से परेशान करने लगे, परंतु आंखे खोलकर देखा तो सब मामला खत्म। प्रवेश परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुआ तो यहाँ प्रवेश नहीं हो सकेगा और ऐसी स्थिति में घर में भी मेरा प्रदेश बंद हो जाएगा। अतः आंखें खोलने के सभी निमित्त उपस्थित होते हुए भी मैंने भूल से भी आंखें न खोलीं। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए तीन, चार और पांच घंटे हुए, अभी तक प्राचार्य नहीं आए। मन तो हुआ कि आंखें खोलकर देखूं तो सही कि प्राचार्य आकर कहीं चुपचाप न बैठे हों। पर वैसा नहीं किया। आखिर छह घंटे बाद प्राचार्य आए। उन्होंने कहा - "वत्स ! तेरी प्रवेश परीक्षा पूरी हो गई। तू इस परीक्षा में सफल हुआ इसके लिए धन्यवाद। तेरे चित्त में एकापता की शक्ति है, उससे तेरा संकल्प प्रबल बनेगा। तू विद्याध्ययन ही नहीं, चाहे जैसा कठिनतम सत्कार्य कर सकता है। आ विद्यापीठ में प्रवेश कर ।' प्राचार्य ने पीठ थपथपाते हुए कहा - 'शाबाश बेटे ! पांच छह घंटे आंख बंद करके इस उम्र में बैठना कोई मामूली वात नहीं है। तुझे जो बच्चे सता रहे थे, मैंने ही उन्हें तेरी परीक्षा के लिए भेजे थे, उन बच्चों पर गुस्सा मत करना।" हाँ तो उस बालक की अनुशासित य एकाग्र चित्त की इतनी कठोर परीक्षा इसलिए ली गई थी कि वह विद्यापीठ में विद्याओं और कलाओं का अध्ययन दत्तचित्त होकर कर सकेगा। अपने चित्त को प्रत्येक कार्य में अनुशासित और एकाग्र रख सकेगा। यह थी प्राचीन विद्यापीठ की प्रणाली ! चित्ता की एकाग्रता से अद्भुत चमत्कार बन्धुओ ! इस प्रकार चित्त की एकाग्रता से तन्मयता से या केन्द्रित होने से बड़े-बड़े भागीरथ कार्य मिनटों में सन्पन्न हो जाते हैं, परन्तु चित्त विकेन्द्रित हो, बिखरा हुआ या व्यग्र हो तो कोई भी कार्य वर्षों तक नहीं हो पाता। संसार में जितने भी जादू के चमत्कार हैं, वे सब चित्त की एकाग्रता से होने वाले प्रबल संकल्प के ही तो चमत्कार हैं। स्वामी विवेकानन्द के जीवन की एक घटान है— एक बार स्वामी विवेकानन्द हैदराबाद को यात्रा कर रहे थे। एक व्यक्ति ने आकर स्वामीजी को प्रणाम किया और सविनय प्राचना की — “स्वामीजी ! मेरे बच्चे को तीव्र ज्वर है। यदि आप उसके सिर पर हाथ रख दें तो उसका ज्वर मिट जाए। मैंने सुना है, महात्मा लोगों के ऐसा करने से बड़े-से बह रोग तक मिट जाते हैं।" स्वामीजी ने सोचा कि महात्माओं का जित्त शुद्ध, निर्मल व एकार होता है, इसलिए उनके द्वारा किये जाने वाले संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति होती है, वे चाहें तो पहाड़ को भी क्षणभर में हिला सकते हैं, ब्रह्माण्ड को भी कम्पित कर सकते हैं। कोई बात नहीं, अगर इसका भला होता हो तो ।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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