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परमार्थ से अनभिज्ञ द्वारा कवन : विलाप ३४६ रहे थे। उस किसान ने उन्हें देख कर समझा—यह उन चोर साधुओं का सरदार मालूम होता है। यह सोच उनकी पीठ पर भी कसका चार-पाँच डण्डे बरसाए।
समर्थ रामदास शिवाजी के गुरु थे। किसान ने समर्थ रामदास को पीटा, यह खबर उड़ती-उड़ती शिवाजी के कानों में पहुंची। शिवाजी ने कुछ सिपाहियों को भेजकर उस किसान को गिरफ्तार करवाया और समर्थ रामदास के सामने उपस्थित करते हुए कहा- "गुरुदेव ! बताइए इस किरतन को क्या दण्ड दिया जाए ?"
बेचारा किसान शिवाजी का प्रकोप ठेवकर कांप रहा था। समर्थ रामदास ने कहा--"इसका क्या अपराध है ? अपराध को मेरे शिष्यों का है, जिन्होंने इससे बिना पूछे ही गन्ने तोड़े। मैंने अपने शिष्यों को साधुता का अधूरा ज्ञान दिया, इसका दण्ड मुझे मिल गया। अतः इसे छोड़ दो और इसका जितना नुकसान हुआ है, उससे दुगुना सरकारी खजाने से भर दो।" फलतः शिवानी ने उस किसान को छोड़ दिया और उसकी क्षतिपूर्ति कर दी।
___ कहने का मतलब यह है कि समर्थ रामदास को अपने शिष्यों को साधुता का अधूरा ज्ञान देने के कारण उसका दुष्परिणाम बोगना पड़ा।
साधु-साध्वियों द्वारा बताये गये अधूरे अर्थ के दुष्परिणाम कई बार साधु साध्वी अपने भक्त-भक्ताओं को जो भी नित्यनियम, या त्याग-प्रत्याखान कराते हैं या उनका जो पाठ है, उन्हें रटने के लिए दे देते हैं, उनका अर्थ, विधि, या उद्देश्य पूरी तरह से नहीं समझाते | कई साधु-साध्वी स्वयं भी उन पाठों का अर्थ, विधि या उद्देश्य पूरी तरह से नहीं समझते, वे गुरु परम्परा से उस पाठ को रट लेते हैं, वह भी कई दफा गलत-सलतः इसी प्रकार वे अपनी भक्त-भक्ताओं को पाठ रटा देते हैं, कई बार उसका मामूली अर्थ समझा देते हैं, अतः अन्धश्रद्धावश या गुरु पर विश्वास करके वे उस पाठ को रटते रही हैं। ऐसा तोतारटन न तो उस धार्मिक क्रिया का वास्तविक फल प्रदान करता है और न ही उससे अपना कल्याण होता है, बल्कि कई बार अनर्थ भी हो जाता है। बेस्माझी से पाठ रटने वाले का श्रम, शक्ति और समय बेकार जाता है। ___ कुछ सच्ची, किन्तु मनोरंजक घटनाएँ तजिए
एक जगह उपाश्रय में बैठी दो साध्वियाँ दशवैकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन का 'घूअमोहा जिंदिया' इस पाठ को इस प्रकार अशुद्ध रट रही थीं-'दोय मुआ जत्तिया'। उनकी गुरुणीजी ने शायद उन्हें ठीक तरह से पाठ समझाया या रटाया नहीं था। वे किसी को दर्शन देने गई हुई थीं। फलतः इस पाठ को 'दोय मुआ जत्तिया' के रूप में गलत रटते सुना उपाश्रय के पास से होकर जाते हुए दो यतियों ने। सुनकर उनका माथा ठनका। उन्होंने सोचा-ये साध्वियाँ तो हमारे लिए अमंगलसूचक शब्द कह रही हैं। इन्हें समझाना चाहिए। अतः। दोनों यति उपाश्रय में पहुँचे और दोनों