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________________ ३४८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ उसका न तो वह उद्देश्य सिद्ध होता है, और न ही उसमें सफलता मिलती है। बल्कि ऐसे अविधियुक्त जाप से मंत्राधिष्ठित देव कुपित हो जाते हैं और उससे उसका भयंकर अनिष्ट हो जाता है। इसी प्रकार किसी बेसमझ श किसी बात से अनभिज्ञ को उस बात से अनभिज्ञ या अधूरी समझ वाला कोई व्यक्ति उस विषय में मार्गदर्शन देता है तो वह उस व्यक्ति की ही नहीं, सारे समाज या ग्राम नगर की ओर से अश्रद्धा का भाजन बनता है, अपना यश खो बैठता है, अपने जीवन पर अपयश का काला धब्बा लगा लेता है, साथ ही जिसको वह उपाय बताता है, मार्गदर्शन देता है, उसके भी श्रम, समय और धन की बर्बादी करा देता है। इसलिए महर्षि गौतम मार्गदर्शक नेता या ज्ञान व उपदेश-प्रदाता को यह दूसरी चेतावनी देते हैं कि जब तक किसी विषय में तुम्हारा ज्ञान परिपक्व या सांगोपांग न हो, तब तक किसी व्यक्ति को उस विषय में सुझा, मार्गदर्शन या परामर्श देना खतरे से खाली नहीं है। वह एक प्रकार का विलाप है, उस विषय में अधूरे अथवा अधकचरे झान वाले व्यक्ति की बकवास है, बड़बड़ाहट है। उस अधकचरे ज्ञान बाले के मार्गदर्शन से मार्गदर्शन पाने वाला भी रोता है और देने वाला भी। कारण यह है कि अधूरा मार्गदर्शन देने से या अधकचरा उपाय बताने से उसे अपनी कार्ययात्रा में जहाँ संकट, विन, विपत्ति या कष्ट आयेंगे, वहाँ वह उन्हें हल नहीं कर सकेगा, वह रोएगा, अपने कर्मों को, मार्गदर्शन देने वाले को; या अन्य निमित्तों को कोसेगा, मन ही मन कुढ़ेगा और क्रोध में आकर प्रतिक्रियास्वरूप वा उस अज्ञानी या अनाड़ी मार्गदर्शक पर बरस भी सकता है, वह उसकी पूरी खबर ले सकता है। तब उसे रोना ही तो पड़ता है, अपने अज्ञान पर। समर्थ रामदास ने कुछ ऐसे साधु बना लिये, जो साधुता से अनभिज्ञ थे। साधु का अर्थ उन्हें इतना ही समझाया गया था कि "भगवान् और गुरु पर पूर्ण श्रद्धा रखना, गुरु की सेवा करना।" उन्हें समर्थ गुर द्वारा भली-भांति साधुता के विषय में समझाये न जाने का परिणाम समर्थ रामदास को' मोगना पड़ा। एक बार वे अपने शिष्यों के साथ एक गाँव से दूसरे गांव जा रहे थे। रास्ते में एक किसान का गन्ने का खेत पड़ा। खेत में खड़े गन्ने देखकर समर्थ रामदास के शिष्यों का मन ललचाया। वे आगे-आगे चल रहे थे, गुरुजी एक-दो शिष्यों के साथ अभी बहुत पीछे थे। अतः साधुता से अनभिज्ञावे शिष्य खेत के मालिक से बिना पूछे ही गन्ने तोड़ने लगे। साधु को जीवनोपयोगी चीजें मुफ्त में मिल सकती हैं, परन्तु याचना करने पर ही। इसका मतलब यह नहीं है कि वह उस चीज के मालिक से बिना पूछे ही स्वयं कोई चीज लेने लगे। यह तो सनैतिकता है, अपराध है। किसान ने साधुओं को गन्ने तोड़ते देखा तो उनकी चोरी की वृत्ति पर उसको बड़ा क्रोध आया। अतः उसने पहले तो साधुओं को रोका, फिर भी न माने तो वह लाठी लेकर मारने दौड़ा। साधु थोड़ी बहुत मार खाकर आगे भाग गये। इधर पीछे से समर्थ रामदास आ
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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