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________________ ३४४ आनन्द प्रवचन भाग ६ इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन । न चासुश्रूषवे वाच्यं न च गां योऽभ्यसूयति । । " इस गीता के तत्त्व को तप रहित मनुष्य को कदापि मत कहना, न श्रद्धाभक्तिरहति व्यक्ति को कहना, जिसकी सुनने की जिज्ञासा या इच्छा नहीं है, जो मेरे तत्त्वज्ञान से ईर्ष्या-द्वेष रखता है, उसे भी मत कहना । " ऐसे अध्यात्मज्ञान के द्वेषी, उसमें नुक्स। नेकालने वाले, उसकी नुक्ताचीनी करने वाले, उसमें दोष बताने वाले, अश्रद्धालु व्यक्ति भी अरुचिवान हैं। ऐसे अरुचिवान श्रोताओं को अध्यात्मज्ञान का क ख ग समझाना ततैये के छत्ते में पत्थर डालना है। एक लोक प्रसिद्ध लौकिक उदाहरण लीजिए--- एक बया नाम की चिड़िया अपने नवनिर्मित घोंसले में बैठी हुई थी। उसने घोंसले का निर्माण इतने अच्छे ढंग से कर रखा था, जिससे सर्दी, गर्मी, व वर्षा आदि से बचा जा सके। वर्षा के दिन थे। बहुत जोर से वर्षा हो रही थी। बया अपने घोंसले में चली गई। उसी वृक्ष पर बैठा बन्दर वर्षा के साथ रुंदी हवा चलने से थरथर काँप रहा था । बंदर को ठिठुरते देख क्या चिड़िया के मन में महानुभूति जागी, उसने बन्दर को उपदेश देते हुए कहा- "बंदर भाई ! तुम्हें वर्षा, सर्दी और गर्मी का बड़ा कष्ट भोगना पड़ता है। हमारी तरह घोंसला क्यों नहीं बना लेते, जिससे इन कष्टों से बच सको। हमारी अपेक्षा तो तुम्हारे में अधिक शक्ति है, तुम्हारे तो हाथ-पैर आदि भी मनुष्यों की तरह हैं। अतः तुम तो बहुत आसानी से अपना निवास बना सकते हो, बना लो।" दया चिड़िया का कथन यथार्थ, उचित एवं हितकर था, लेकिन इस उपदेश को सुनकर बन्दर को इतना क्रोध आया कि अपना घोंसला बनाना तो दूर रहा, चिड़िया का घोंसला भी तोड़-फोड़कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला । सच है, उपदेश उसी को देना चाहिए, जो जिज्ञासु हो, उपदेश को सार्थक कर सके। उत्तराध्ययन सूत्र में चित्त और सम्भूति का एक अध्ययन है। जिसका सारांश यह है कि ये दोनों पाँच जन्मों तक लगातार साथ-साथ जन्मे और भरे, किन्तु छठे जन्म में चित्त का जीव पुरिमताल नगर में श्रेष्ठीपुत्र हुए, जातिस्मरणज्ञान पाकर मुनि दीक्षा ले ली। इधर संभूति का जीव पूर्वजन्म में किये हुए निदान के फलस्वरूप ब्रह्मदत्त नाम का चक्रवर्ती बना । कम्पिल्लपुर की राजधानी में रहता था। एक बार एक नाट्यकलाप्रवीण नट ने नाटक का आयोजन किया। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नाटक देख रहा था, उसी दौरान एक दासी पुष्पमाला, फूल का दड़ा वगैरह लेकर आई। ब्रह्मदत्त के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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