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अरुचि वाले को परमार्थ-कथन : विलाप ३३३ के साथ पूर्ण करने में सबको अपना महत्वपूर्ण हिस्सा अदा करना है। इस योजना के पूर्ण हो जाने पर उनके तथा देश के लाखों-करोड़ों परिवारों को भी लाभ होने वाला
कहना न होगा कि मजदूर नेहरू जी के संक्षिप्त भाषण से अत्यधिक प्रभावित हुए। बे समझ गये कि "इस शानदार योजना से उनका ही नहीं, सारे देश का सम्बन्ध है।" एक पत्रकार ने जब नेहरूजी से यह पूटर कि आपने इन मजदूरों का इतना समय खराव करके क्या लाभ उठा लिया ? उन्होंने सान्त भाव से उत्तर दिया---''यदि हमारे देश के इंजीनीयर इस प्रकार की तमाम बाते समय-समय पर श्रमिक वर्ग को समझा दिया करें तो वे खुशी-खुशी और सूझबूझ के साथ उस कार्य में रुचि लेने लगें तो अपना ही कार्य समझकर उसे पूरा करें।"
बन्धुओ ! क्या उपदेशक, वक्ता या परामर्शक को अपने श्रोताओं को समझाने के लिए तथा उन्हें नीति, धर्म और अध्यात्म की बातों में दिलचस्पी लेने के लिए तैयार नहीं करना चाहिए ? एक पाश्चात्य विचारक मेसिलोन (Massillon) ने स्पष्ट कह दिया
"I love a seriosu preacher, who speaks for my sake, and not for his own; who seeks my salvation anol not for his own vain glory."
'मुझे वह गम्भीर उपदेशक प्रिय है, जी मेरे लिए बोलता है, न कि अपने लिए, जिसे मेरी मुक्तिवांछनीय है, न कि अपनी थेथी शान ।'
उपदेशा के योग्य पात्र कौन, अपात्र कौन ? इसीलिए महर्षि गौतम ने इसी बात की ओर संकेत किया है कि शिक्षा, उपदेश, प्रेरणा, सुझाब या सलाह किसको देनी चाहिए, किसको नहीं ? इस बात का पर्याप्त विवेक उपदेशक या परमार्शक वक्ता में होना चाहिए। एक साधक कवि ने इस सम्बन्ध में अपने भजन में पर्याप्त प्रकाश डाला है
'शिक्षा के लिए जी, तुम अपने को पात्र बनाओ। फिर जग के लिए जी, देखो, कितने प्रिय बन जाओ ? ध्रुव । जलद एक ही सभी ठौर पा, एक-सा जल बरसाता। सीप, सरोज, समुद्र, तवे पर, वह फिर अन्तर पाता। शिक्षा.... शिक्षक-जलधर सीप पात्र ले शिक्षा-बूंद गिराता। मोती बनकर वह ओरों की कितनी शान बढ़ाता ? शिक्षा.... ग्राहक एक सरोज बना, वह कुछ भी नहीं ले पाता। सिर्फ प्रशंसक गुण का बनकर, उसकी आब बढ़ाता। शिक्षा....
१. तर्ज समय के फेर सेजी