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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३११ कुम्हार से कहा-'इन बर्तनों के दाम अपनी दूकान से ले आना।" कुम्हार ने स्पष्ट कह दिया-मैं सेठ को अच्छी तरह जानता हूँ। उनके पास दाम लेने मैं नहीं जाऊँगा। वे पैसों के बदले में ऐसी खराब जुआ) देते हैं, जिसे मेरे गधे भी नहीं खाते । आपको बर्तन चाहिए तो अपने नौकर को पैसे कर भेज देना, ये आपके पसन्द किये हुए बर्तन मैं एक ओर रख देता हूँ।" परन्तु पड़ौसिनों के सामने ५.६ आने के लिए कुम्हार द्वारा स्पष्ट कहे हुए वचन रुपाली बा को असह्य अपमानजनक लगे। वह क्रोध में आगबबूला हो गई और वे बर्तन छोड़कर कुछ भी कहे बिना क्रोध में भन्नाती हुई घर आ गई। आते ही मुँह चढ़ाकर कोपभवन में जा बैठी। वह जानती थी, मैं कहूँगी वैसे ही सेठ कर लेंगे।
__लगभग ११ बजे सेठ दूकान से घर आए। पर सेठानी का कहीं भी पता न चला। आखिर बड़ी मुश्किल से पता चला कि वह कोपभवन में है। सेठजी ने उसे बहुत मनाया, पर वह तो रोष ही रोष में चुप्पी साधे बैठी थी।
सेठ ने कहा--"कुछ कहो तो सही, बात क्या हुई ? क्या मुझसे कोई अपराध हो गया है या किसी ने तुम्हें कुछ कह दिया है ? क्या आज तबियत खराब है ?"
लगभग एक घण्टे तक सिरपच्ची करने के बाद सेठानी ने मुँह खोला—''मुझे क्यों बुलाते हो? इन लाखों रुपयों को झौंक वा भाड़ में।" फिर आज की बीती हुई घटना सुनाते हुए कहा-'गाँब में तुम्हारी इज्जा तो टके भर की भी नहीं है कि कोई तुम्हें दो आने की चीज उधार नहीं देता। वह तीन कौड़ी का कुम्हार कहने लगा–नकद पैसे देकर बर्तन ले जाओ। मैं मेठ के पास बर्तन के दाम लेने नहीं जाऊँगा। वे मुझे पैसों से बदले में ऐसी सड़ी जुआर देते हैं, जिसे मेरे गधे भी नहीं खाते। यों कहकर मेरी पड़ौसिनों के सामन मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी उसने ।"
सेठ ने कहा-“पर इसमें क्या हो गया? हमें ऐसे बुद्धओं की बात सुननी ही नहीं चाहिए। सुनी हो हो दिमाग में नहीं रखनी चाहिए।"
यह सुनकर तो सेठानी का रोष सेठ पर और बढ़ गया। वह क्रोध में फुफकारती हुई बोली-"बस, बस रहने दो ! आप ही ऐम हो, कि कोई सिर में मार दे तो भी कुछ नहीं बोलते, मैं इसे सह नहीं सकती। वेचल धन ही इकट्ठा करना सीखे हो, प्रतिष्ठा भले ही चली जाए, पर मेरी प्रतिष्ठा गई उसका आपके मन में कोई दर्द ही नहीं है।"
यों कहती हुई बह सेठ को उपालम्भ ने लगी। सेठानी के दिमाग में तो अपमानजनित गुस्सा भरा हुआ था। सेठ ने उसे अनेक प्रकार से समझाया, पर वह तो टस से मस न हुई। क्रोध अधिकाधिक बढ़ता देख सेठ ने कहा-"क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे तुम्हारे मन का समाधान हो जाए ?" सेठानी ने अपना अन्तिम ब्रह्मास्त्र फेंकते हुए कहा-“मेरे मन का समाधान तभी हो सकता है, जब वह कुम्हार