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आनन्द प्रवचन : भाग ६
करने में तत्पर हो जाती है। फिर लोभ मनुष्य धन की पिपासा या तृष्णा जगाता है। धन की प्यास से पीड़ित व्यक्ति यहाँ भी दुःख पाता है, परलोक में भी।"
लोभ से प्रेरित व्यक्ति किस प्रकार यह । और वहाँ दुःख पाता है ? इसके लिए एक प्राचीन उदाहरण लीजिए
राजगृह का करोड़पति, अनेक व्यवसायों का मालिक, कृपण शिरोमणि मम्मण सेठ अत्यन्त लोभी था। वह अपने हाथ से कभी दान नहीं देता था और न ही वह खाने-पीने, पहनने आदि में अपने शरीर पर विशेष खर्च करता था। यही नहीं, उसके लड़के कुछ खर्च करते थे, वह भी उसे बहुत अखरता था। इसी कृपणता एवं अतिलोभी मनोवृत्ति के कारण उसने लड़कों को कुछ देकर अलग कर दिया। फिर भी वह अपनी अतिलोभी वृत्ति के कारण किसी को दान देते या किसी को अच्छा भोजन करते देखता तो मन में खिन्न होता था। इल्मा ही नहीं, पड़ौसी के यहाँ कोई मेहमान आ जाता तो उसके पेट में दर्द शुरू हो जाम था। किसी याचक को अपने द्वार पर उसकी प्रशंसापूर्वक याचना करता देखता तो मैंह फिरा लेता था।
एक दिन मम्मण सेठ ने सोचा-'कृषि, व्यापार एवं अन्य व्यवसायों से मेरे यहाँ बहुत-सी सम्पत्ति इकट्ठी हो गई है, इसलिए शायद किसी चोर, उचक्के का मन चल जाए या लुटेरा लूट ले, अथवा मेरे लड़के खज कर डालें, इसलिए मुझे सारी सम्पत्ति का एक स्वर्णमय रलजटित बैल बनवा लेना चाहिए, जिसे न कोई खा सके, न खर्च कर सके, न चुरा सके।' बस, अपने निश्चय ने अनुसार कुछ ही दिनों में मम्मण सेठ ने अपने मकान के तलघर में सोने का एक विशाल बैल बनवा लिया, जिसमें अपनी सारी सम्पत्ति लगा दी। स्वर्णमय रत्नजटिल उस ईल की चमक-दमक देखकर मम्मण अत्यन्त प्रसन्न हुआ। परन्तु उसके मन में फिर एक लालसा पैदा हुई कि इस एक बैल से क्या हो? इसकी जोड़ी होनी चाहिए, तभी बैल अच्छा लगता है। उसकी बुद्धि ने जोर मारा कि इस बैल की जोड़ी का दूसरा बैल बनाने के लिए कुछ धनराशि तो मेरे पास है, कुछ परदेश में चलने वाले वाणिज्य से प्राप्त हो जाएगी, शेष आवश्यक धनराशि के लिए मुझे स्वयं श्रम करना चाहिए। तभी दूसरा बैल बन सकेगा। इस समय चौमासा है। बरसात के कारण नदियों में पूर आ गया होगा। अतः नदी तट पर जाकर नदी में बहती हुई लकड़ियां या अन्य जो भी चीज मिलें, उनके गट्ठर बाँधकर लेता आऊँ तो उन्हें बेच-बेचकर भी कुछ द्रव्य तो कमा : लूँगा। अतः अतिलोभी सेठ घर से उठा, शरीर पर एक लंगोटा बाँध लिया, वाकी कपड़े उतार दिये, क्योंकि बाहर वर्षा हो रही थी, इसलिए कपड़े भीग जाते। ऐसी स्थिति में यह घर से निकला। ठंढी हवा से उसका शरीर घर-थर काँप रहा था, बादलों के कारण अँधेरा हो रहा था, बीच-बीच में बिजली चमकती थी। मम्मण नदी तट पर आया। नदी में तैरती लकड़ियों को खींच-खींचकर निकालने लगा।
ठीक इसी समय महारानी चेलना अपने महल के गवाक्ष में बैठी बाहर हो रही