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________________ प्रस्तावना जैन साहित्य भारतीय साहित्य की एक अनमोल निधि है। जैन मनीषियों का चिन्तन ब्यापक और उदार रहा है। उन्होंने भाषावाद, प्रान्तवाद, जातिवाद, पंथवाद की संकीर्णता से ऊपर उठकर जन-जीवन के उत्कर्ष के लिए विविध भाषाओं में विविध विषयों पर साहित्य का सरस सृजन किया है। अध्यात्म, योग, तत्त्व-निरूपण, दर्शन, नयाय, काव्य-नाटक, इतिहास, पुराण, नीति, अर्थशास्त्र, व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, भूगोल-खगोल, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, मंत्र, तंत्र रल-परीक्षा, प्रभृति विषयों पर साधिकार लिखा है, और खूब जमकर लिखा है। यदि भारतीय साहित्य में से जैन रमहित्य को पृथक कर दिया जाए तो भारतीय साहित्य प्राणरहित शरीर के सदृश परिज्ञान होगा। जैन साहित्य मनीषियों ने विविध पालियों में अनेक माध्यमों से अपने चिन्तन को अभिव्यक्ति दी है। उनमें एक शैली कुलवत भी है। 'कुलक' साहित्य के नाम से भी जैन चिन्तकों ने बहुत कुछ लिखा है। दान, शील, तप, भाव, ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि अनेक जीवनोपयोगी विषयों पर पृथक-पृथक कुलकों का निर्माण किया है। परम श्रद्धेय पूज्य आचार्य सम्राट को आनन्द ऋषि जी महाराज श्वे० स्था० जैन श्रमण संघ के द्वितीय आचार्य पद पर अधिष्ठित थे, यह हम सब के लिए गौरव की बात थी, यह और भी उत्कर्ष का विषय है कि वे भारतीय विद्या (अध्यात्म) के गहन अभ्यासी तथा मर्मस्पर्शी विद्वान् थे। वे नपाय, दर्शन, तत्वज्ञान, व्याकरण तथा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि अनेक भाषाओं वेत ज्ञाता थे, और साथ ही समन्चयशील प्रसार और व्युत्पन्न प्रतिभा के धनी थे। उनकी वाणी में अद्भुत ओज और माधुर्य था। शास्त्रों के गहनतम अध्ययन, अनुशीलन से जन्य अनुभूति जब उनकी वाणी से अभिव्यक्त होती थी तो श्रोता सुनते-सुनते भाव-विभोर हो उठते थे। उनके बचन जीवन-निर्माण के मूल्यवान सूत्र थे। पूज्ज आचार्य प्रवर के प्रवचनों के संकलन की बलवती प्रेरणा विद्या रसिक श्रद्धेय प्रवर्तवत श्री कुन्दन ऋषि जी म० ने हमें प्रदान की। बहुत वर्ष पूर्व जब आचार्य श्री का उत्तर भारत, देहली, पंजाब आदि प्रदेशों में विचरण हुआ, तब वहां की जनता ने ही आचारी श्री के प्रवचन साहित्य की मांग की थी। जन-भावना को विशेष ध्यान में रखकर वुल्दन ऋषि जी महाराज के मार्गदर्शन में पूज्य आचार्य प्रबर के प्रवचनों के संकलन, संपदन, प्रकाशन की योजना बनी और कार्य का प्रारम्भ भी हुआ। धीरे-धीरे 'आनन्द प्रवचन' नाम से १२ भाग प्रकाशित हो चुके हैं।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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