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________________ १८ आनन्द प्रवचन : भाग "The greatest homage we payt to truth is to use it." -सत्य का सबसे बड़ा अभिनन्दन, जिसे कि हम कर सकते हैं, वह है, सत्य का सर्वतोमुखी आचरण। एक सत्यनिष्ठ कवि ने सत्येश्वर प्रभु से प्रार्थना की है.. प्रभु विनय यही है चरणन में। हो सन्मति जन-जन के मन में।। ध्रुव ।। सत्य ही सोचें, सत्य ही बोलें, सत्य ही ना, सत्य ही तोलें। रहें मस्त सदा सत्पण में। । प्रभु०।। सत्य का सब देश पुजारी हो हठवाद की दूर बीमारी हो। अभिमान न हो, मानव-मन में। मभु०।। वास्तव में जीवन के कण-कण में जब सत्य की प्रतिष्ठा करेंगे, तभी सर्वांगीण रूप में सत्य की शरण गही समझी जाएगी। सत्य के लिग गणधर गौतमस्वामी जैसी जिज्ञासा, समर्पणवृत्ति, सत्यनिष्ठा और सदा की जागृति होनी चाहिए तभी सत्य की शरण जीवन में साकार होगी। इसीलिए महर्षि गौतन ने गौतमलक में कहा "किं सरणं ? तु सच्चं ।'
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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