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________________ २३० आनन्द प्रवचन : भाग ६ मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है। एक बुढ़िया सामायिक करने के लिए घर के दरवाजे के बीच में ही बैठ गई, इसलिए कि कोई घर में न घुस सके और घर की रखवाली भी हो जाएगी तथा सामायिक भी। पर सामायिक क्रिया ऐसी नहीं होती कि उसके साथ ही अनेक सांसारिक क्रियाएँ भी कर ली जाएँ। पर हुआ ऐसा ही। बुढ़िया की छोटी पुत्रवधू रसोईघर में काम करुती-करती उसे खुला छोड़कर ऊपर चली गई। बुढ़िया यह सब देख रही थी, पर बोली कुछ नहीं। बुढ़िया को हलका-सा नींद का झौंका आया कि इतने में एक कुत्ता बाहर से आया और सीधा रसोईघर में घुस गया। जब वह दूध-दही के बर्तन साफ करने लगा, तब बुढ़िया से न रहा गया। मुँह पर पट्टी बँधी हुई थी, फिर भी उसने नमस्कार मंत्र की माला फेरने का नाटक करके गाते-गाते बहू को कहा 'लंबापूंछो लंकापेटो, घर में घसियो आन जी, णमो अरिहंताणं ।' "लम्बी पूंछ और छोटे पेट वाला कुत्ता घर में घुस गया है, णमो अरिहंताणं" परन्तु जब बहू ने नहीं सुना तो बुढ़िया फिर बोली ___ 'दूध दही ना चाडा फोडूया, ओरा माही यसियो जी, पमो सिद्धाणं' फिर भी बहू ने नहीं सुना तो उसने तीसरा पद ललकारा--- 'उज्ज्वलवंता घी-गुड खंता, बहुवर नीचे आओ जी, णमो आयरियाणं।' इस बार बुढ़िया का तीर निशाने पर लग गया। बहू ने नीचे आकर पूछा-'आप क्या फरमा रही हैं ?' तब वह बोली-मेरे तो सामायिक है, वह कुत्ता अन्दर घुस गया है, देखती क्या हो 'ऊखल लारे, मूसल पडियो, ले इणने धमकायोजी, णमो उबवायाणं ।' । बहू ने कुत्ते को तो बाहर निकाला, लेकिन सासूजी की अजीव सामायिक देख उसे हँसी आ गई। वह पाँचवाँ पद पूरा करती।हुई बोली'समाई तो म्हारे पीरे ही करता, आ किरिया नहीं देखी जी नमो लोए सव्वसाहूर्ण।' बन्धुओ ! धार्मिक क्रिया में भी मन साथ में नहीं रहता है, तब वह कोरी द्रव्यक्रिया रह जाती है, भावक्रिया नहीं बनत्रो। इस सम्बन्ध में अनुयोगद्वार सूत्र में बहुत ही स्पष्टता के साथ कहा है तच्चित्ते, तम्मणे, तल्लेसे, तबजावसिए, तत्तिबावसाणे, तवट्ठोवृत्ते, तदपियकरणे तब्भावणाभाविए। जो भी क्रिया करो, उसमें चित्त को गिरो दो, उसी में तन्मय हो जाओ, लेश्या को भी वहाँ नियोजित कर दो, उसके लिए ज्वध्यवसाय भी वैसा ही बनाओ, उसी को सफल करने की मन में तीव्र तड़फन हो, उसके लिए अपने आपको समर्पित कर दो। उसी के अर्थ में अपना उपयोग लगाओ (रपयुक्त बन जाओ) उसी की भावना से अपना अन्तःकरण वासित कर दो, तुम्हारी वारक्रिया भावक्रिया होगी।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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