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पत्नवान मुनि को तजते पाप :१ २२१ प्रत्येक प्रवृत्ति के लिए मनुष्य के पास तीन बड़े-बड़े सशक्त साधन हैं—मन, बाणी और शरीर । दूसरे प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य का मन बहुत ही उन्नत, वचन बहुत ही सामर्थ्यशील और शरीर बहुत ही उपयोगी होता है। परन्तु इन्हीं तीनों से मनुष्य शुभाशुभ्र प्रवृत्ति करके, पुण्य और पाप का उपार्जन करता है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है
तुलसी यह तनु खेत है, मन-वच कर्म किसान ।
पाप-पुण्य दो बीज हैं, बुवै सो लुणे निदान।। इसका भावार्थ स्पष्ट है। मनुष्य मन , वचन और शरीर इन तीनों साधनों से पाप की खेती भी कर सकता है और पुण्य की खेती की भी। यह तो उसी पर निर्भर है। कोई भी दूसरी शक्ति, भगवान या देवता धाकर उसकी प्रवृत्तियों को सुधार या बिगाड़ नहीं सकता। अपनी प्रवृत्तियों को ठीक रूप में करना या गलत रूप में करना उसी के हाथ में है।
स्वयं प्रतनायुक्त प्रवृत्ति ही बेड़ा पार करती है बाहरी सहायता की अपेक्षा करने के बजाय यह अच्छा है कि मनुष्य अपने भीतर छिपी हुई शक्तियों एवं सत्रवृत्तियों को ढूँढ़े और उभारे। प्रगति का सारा आधार व्यक्ति की अन्तश्चेतना और भावात्मक स्फुरणा पर निर्भर है। समस्त शक्तियों का स्रोत मनुष्य की अन्तश्चेतना में है। जब तक वह स्रोत बंद पड़ा रहता है, तब तक वह जो भी प्रवृत्ति करता है, वह पापकर्मबन्धमनक होती है, और जब वह उस प्रसुप्त शक्तिस्रोत को प्रवाहित कर देता है, तब जही प्रवृत्ति पुण्य या धर्म का कारण बनती
दो प्रकार के यात्री हैं। उनमें से एकत्यात्री दूर देश की यात्रा पर निकला। वह चार कोस चला कि एक नदी आ गई। क्लिारे पर नाव लगी थी। उसने सोचा "यह • नदी मेरा क्या करेगी ?" पाल उसने बाँधा नहीं, डांड उसने चलाए नहीं, बहुत जल्दी में
था वह, आगे जाने की। बादल गरज रहे शी, लहरें तूफान उठी रही थीं। फिर भी वह माना नहीं। नाव चलाना उसे आता नहीं था, किन्तु आवेश में आकर वह नाव पर सवार हो गया, लंगर खोल दी। नौका चल पड़ी। किनारा जैसे-तैसे निकल गया, लेकिन ज्यों ही नाच मझदार में आई, वैसे है भंवरों और उत्तालतरंगों ने आ घेरा । नाव एक बार ऊपर उछली और दूसरे ही क्षण यात्री को समेटे जल में समा गई।
एक दूसरा यात्री भी आया वहाँ फ। वह कुशल नाविक था। यद्यपि नाव टूटी फूटी थी, डाँड कमजोर थी, फिर भी उसने युक्ति से काम लिया। वह नौका लेकर चल पड़ा। लहरों ने संघर्ष किया, तूफान कराए, हया ने पूरी ताकत लगाकर नौका को उलटने का पूरा प्रयत्न किया, लेकिन वह यात्री होशियार नाविक था, इन कठिनाइयों से पह पूरा परिचित था। वह भाव को संभालता हुआ सकुशल दूसरे पार पहुँच गया।