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सत्यशरण सदैव सुखदायी
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देता है। गृहस्थ भी किसी अपराध के बाद सत्यशरण स्वीकार करे तो भारी सरकारी सजा से बहुत कुछ अंशों से बच जाता है, आत्मशुद्धि भी कर लेता है।
अफ्रीका में महात्मा गांधी के पाठ करचोरी का एक केस आया। गांधीजी उसकी पैरवी कर रहे थे, परन्तु मुवक्किल का करचोरी का अपराध सिद्ध हो रहा था। सत्यनिष्ठ गांधी को पता लगा कि मुवक्किन ने वास्तव में करचोरी की है और उसे वह छिपाकर निर्दोष सिद्ध होना चाहता है, वे दूसरे ही दिन मुवक्किल के पास पहुंचे और कहने लगे-"मैं आपके मुकदमें की पैरवी नही कर सकता, मुझे मामला झूठा लगता है। आपकी करचोरी प्रायः सिद्ध हो चुकी है। आपको बहुत ही भयंकर सजा मिलने की संभावना है। अतः इससे बचने का एक ही उपाय है. सत्य की शरण ! आप अपनी करचोरी का अपराध स्वीकार कर लें। मेरा विश्वास है कि इससे आपको सजा तो होगी, पर बहुत मामूली सजा से या कदाचित् सजा बिना ही काम हो जाएगा।" घबराये हुए मुवक्किल में गांधीजी की सलाह मानकर सत्य की शरण स्वीकार की। गांधीजी ने अदालत में अपने मुवक्किल की ओर से कहा-''मेरे मुवक्किल ने चोरी की है, इसके लिए उसके मन में पश्चात्ताप है और वह अपनी गलती स्वीकार करता है।" गांधीजी के इस सत्य बयान पर सब वकील आश्चर्यचकित हो गए कि यह मुवक्किल को और फंसा रहा है। परन्तु मजिस्ट्रेट ने गांधीजी के मुवक्किल द्वारा सत्यतापूर्वक अपना अपराध स्वीकार का लेने के कारण भारी सजा के बदले जितने रुपयों की कर चोरी की थी, उससे दुगुनी अर्धराशि भर देने की सजा दी। मुवक्किल ने यह सजा स्वीकार कर ली और अर्थदण्ड भर देने के बाद एक बड़े कागज में करचोरी का ब्यौरा लिखा तथा नीचे सूचना लिखी कि भविष्य में मेरी फर्म में कोई किसी प्रकार की करचोरी न करे। उस कागज को शीशे में मढ़वाकर उन्होंने अपनी फर्म में टंगवा दिया।
मतलब यह है कि महात्मा गांधी अपने मुवक्किल की सत्य की शरण स्वीकार कराकर उसे एक बड़े संकट से बचाया | सत्य के प्रभाव से दण्ड भी कम मिला और भविष्य के लिए उसके जीवन का सुधार भी हो गया।
सत्यशरण से निर्भयता का संचार सत्यशरण स्वीकार करने पर अगए व्यक्ति किसी संकट में फंस भी जाता है तो सत्याधिष्ठित देव उसकी सहायता करते हैं, उसमें एक प्रकार की निर्भयता आ जाती है, वह बेधड़क होकर अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है. इतना ही नहीं. सत्य के प्रभाव से वह उस अपराध से शीघ्र छुटकारा पा लेता है। शास्त्र में कहा है
"सच्चस्स आणाए उमडिओ मेहावी मारं तरइ।" सत्य की आज्ञा में उपस्थित मेधापपुरुष मृत्यु के क्षणों को भी पार कर जाता है, अथवा मृत्युभय पर भी विजय पा लेता है। वह किसी प्रकार का भय नहीं रखता। जैसा कि नीतिकार कहते हैं