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आनन्द प्रवचन : भाग ६
कि यहाँ जो बाँसों का भार रखा है, उसमें एक बाँस में चार रल हैं। अतः वही बाँस उठाकर राजकुमार ने उसे फाड़ा तो उसमें चार रल निकले। यह सब पुण्यप्रभाव से मिला है, यह जानकर मकरध्वज राजमहल की ओर लौटने लगा। इतने में ही दिव्य संगीत की ध्वनि उसके कानों में पड़ी। वह उसी आवाज की दिशा में चला तो आगे एक यक्ष का देवालय आया; जहाँ एक मुनिवर की सेवा में एक देव ने आकर नाटक किया था, उसी का उपसंहार करके वह अमओ जा रहा था। मुनिराज से सविनय पूछने पर उन्होंने उस देव का परिचय दिया। जो सुषावाद (असत्य) का त्याग करने के कारण देव बना था। अन्त में राजकुमार को उन्होंने उपदेश दिया कि "तुम में सत्य भाषण का जो गुण है, उस पर प्राणान्त तक दृढ़ रहना, चाहे प्राण चले जाएँ, असत्य कभी मत बोलना।" राजकुमार ने मुनिवर से सत्य-अणुव्रत पालन करने की प्रतिज्ञा ले ली और सन्तुष्ट होकर मुनि को बन्दन करके वह घर लौट गया।
कुमार के चले जाने के पश्चात् उमा देव ने मुनि से पूछा---''मुनिवर ! यह राजकुमार प्राणप्रण से इस सत्यव्रत का पालन करेगा या डिग जाएगा ?"
मुनि ने कहा----"यह प्राणान्त तक रूय पर दृढ़ रहेगा।"
इस पर उस देव ने राजकुमार की परीक्षा करने की ठानी। वह एक वस्त्र व्यापारी का वेष बनाकर राजसभा में घास का पूला लेकर आया और पुकार करने लगा-"राजन् ! मैने एक बांस में चार रा रखे थे, उन्हें कोई चोर चुरा ले गया है। अतः उस चोर को पकड़वाकर उससे चोरी कबूल करावें।"
यह सुनकर राजा ने नगरी में ढिंगोरा पिटाया। ढिंढोरा सुनकर सत्यनिष्ठ राजकुमार मकरध्वज ने बांस में से निकाले हुए वे चारों रल लाकर सौंप दिये। लोगों ने कुमार से कहा- "आपको रल निकालते किसी ने देखा ही नहीं है। अतः आप झूठ बोलकर ये रत्न बचा लीजिए। उसके पास कोई साक्षी तो है नहीं, क्या कर लेगा ?" परन्तु मकरध्वज ने कहा-"नहीं मुझसे ऐगा कदापि नहीं होगा। मेरे प्राण चले जाएँ, तो भी मैं असत्य नहीं बोलूंगा।" सत्य की परीक्षा में उत्तीर्ण होने से वह देव प्रगट हुआ
और प्रसन्न होकर उसने राजकुमार को श्रमभक्ति से नमस्कार किया, उसके सत्य पर दृढ़ रहने की प्रशंसा की और स्वर्णवृष्टि करके वे चारों रल वापिस दिए। राजा मकरध्वज कुमार का यह पुण्यप्रभाव देखकर चकित हो गया। उसने मकरध्वज से अपने अपराध के लिए क्षमायाचना की। कहा—'पुत्र ! तुमने जो जो पुण्यातिशय की बात कही थी, उसे सत्य सिद्ध करके बका दी है। अतः मैं तुम्हारे सत्याधरण से प्रभावित होकर यह राज्यमी तुम्हें सौंपता है।" यों कहकर राजा ने उसे राजगद्दी पर बिठाकर स्वयं मुनिदीक्षा ले ली।
सचमुच, सत्यनिष्ठ के सत्याचरण से देवता भी नमन करके उसे भौतिक श्री से समृद्ध कर देते हैं।