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सत्यशरण सदैव सुखदायी सत्यार्थी पुरुष के लिए निर्धनता शोभारूप है। सत्य के लिए वह निर्धनता को स्वीकार कर लेगा, वाह्य सुख-सुविधाओं का भी स्केछा से बलिदान कर देगा, परन्तु सत्य को छोड़ना या असत्य को प्रश्रय देना कदापि स्वीकार नहीं करेगा।
__ दादा मावलंकर जिस न्यायालय में वमोल थे, उसमें मजिस्ट्रेट उनका घनिष्ठ मित्र था। यों वकालत के क्षेत्र में उन्हें पर्याप्त या, सम्मान और धन भी मिला था, पर यह सब उनके लिए तभी तक था, जब तक सच्च को आंच नहीं आने पाती। वे कोई भी झूठा मुकदमा नहीं लेते थे, फिर चाहे झूठे मुकदमे की पैरवी से मिलने वाले हजारों रुपये ही क्यों न ठुकराने पड़ें।
एक बार उनके पास बेदखली के चानीस मुकदमे आए। मुकदमे लेकर पहुँचने वाले जानते थे कि कलेक्टर साहब दादा मावलंकर के मित्र हैं, इसलिए जीत की आशा से भारी अर्थराशि देने को तैयार थे। माकांकर चाहते तो वैसा कर भी सकते थे। लेकिन उन्होंने पैसे का रत्तीभर भी लोभ न कर अपनी सत्यनिष्ठा का परिचय दिया। सभी दावेदारों को बुलाकर उन्होंने साफ-साफ कह दिया -आप लोग आज तो घर जाएँ। कल जिनके मुकदमे सच्चे हों, वे ही मेरे पास आएँ।"
आपको आश्चर्य होगा कि दूसरे दिन एक व्यक्ति पहुँचा। मावलंकरजी ने उसके मुकदमे की पैरवी की, शेष ने उन पर बहुत दवाब डलवाया, पर उन्होंने वे मुकदमे छुए तक नहीं।
इससे निष्कर्ष निकलता है कि मावलंकर जैसे सत्य का आश्रय लेने वाले लोग अल्पधनी होते हुए भी शान, सुख, निर्भयता, निश्चिन्तता और स्वाभिमान के साथ जीते हैं, जबकि असत्य का आश्रय लेकर चलने भाले चाहे एक बार धन का अम्बार लगा लें, सुख-सुविधा के साधन भी प्रचुर मात्रा में जुटा लें, लेकिन वे धन और साधन उन्हें सुख की नींद सोने नहीं दे सकते, उनके कोवन में विषाद, क्षोभ, ग्लानि, अपमान, अशान्ति और पश्चात्ताप की परिस्थितियाँ अधिक आने की सम्भावना है।
सत्यशरण : कष्टहरण लोगों को प्रायः सत्य की शक्ति पर भरोसा नहीं होता, इस कारण वे सत्य की शरण लेने से कतराते हैं। वे समझते हैं, सच बोलने या सत्य व्यहार करने से हमारा दोष, या अपराध जाहिर हो जाएगा, हमारी जौहीन होगी, समाज में हम अपमानित या निन्दित होंगे, परन्तु होता इससे उलटा है। जो लोग सत्य की शरम में जाते हैं, वे कदाचित् किसी अपराध या दोष के कारण किसी कष्ट में पड़े हों तो भी सत्य के प्रभाव से उनका कष्ट दूर हो जाता है, उनके सिर से बहुत बड़ी चिन्ता का भार हलका हो जाता है, उनका सम्मान भी बढ़ता है, लोरों में उनका विश्वास बैठ जाता है, वे विश्वसनीय व्यक्ति बन जाते हैं। पाश्चात्य वेद्वान ड्राइडेन (Dryden) के शब्दों में सत्य की महत्ता देखिए-"Truth is the foundation of all knowledge and the coment of all societies.