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सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : १ १६१ विचार या दोषयुक्त भाव आते ही वह तुरन्त संभन्न जाता है और वह सत्यरूपी भगवान् की प्रेरणा से आज्ञा से चलता है, इसलिए उनवत आज्ञा का भंग प्रायः नहीं करता। किसी कारणवश कभी गलती हो भी जाती है ता वह उसे सुधार लेता है, गलती को वह बिना झिझक के कबूल कर लेता है। इसलिए ठोकर लगते ही सीधे सरल सत्य मार्ग पर चला आता है। उसे सत्यमार्ग ही सीधा और सरल लगता है, सत्य भिन्न मार्ग टेढ़ा प्रतीत होता है। उसके विचार पाश्चात्य विचारक बुल्चर (Bulwer) के शब्दों में कहें तो यों कह सकते हैं -
"One of the sublimest things in the world is plain truth." 'संसार की वस्तुओं में एकमात्र सरल साद । सत्य ही सर्वोत्कृष्ट है। '
ऐसा सत्यनिष्ठ व्यक्ति निर्भय होता है। भय तो उसे होता है, जिसमें कुछ कमजोरी हो, जिसे अपने प्राणों का मोह हो, जी कदम-कदम पर अपने धन, साधन, सुख-सुविधा, मकान और प्रतिष्ठा आदि की आसक्ति से लिपटा हो। जिसे इनकी चिन्ता नहीं है, एकमात्र सत्य भगवान पर अखण्ड विश्वास है, जो सत्य भगवान के चरणों में समर्पित है, उसे भय किसका ? उसे कोई भी आतंक, विप्लव, शस्त्रास्त्र प्रहार डरा नही सकता। 'सत्ये नास्ति भयं किञ्चित्' यही उनका जीवनमन्त्र होता है। उसे कोई कितना ही डराए, धमकाए सत्य से वह इन्च भी विचलित नहीं होता । मृत्यु उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती, व्याधि उसकी सत्यनिष्ठा भंग नहीं कर सकती, दरिद्रता आदि अन्य विपत्तियाँ उसे अपने सत्यपथ से डिगा नहीं सकतीं। पाश्चात्य विचारक रस्किन (Ruskin) के शब्दों में इसे दोहरा दूँ तो कोई अत्युक्ति न होगी
"He, who has the truth in his neart needs never fear. " "जो सत्य को अपने हृदय में प्रतिष्ठित कर लेता है, उसे कदापि डरने की जरूरत नही है। वह सर्वदा अजेय रहता है। "
यद्यपि सत्य के आराधक पर कई बार विपत्तियां आती हैं, भयंकर कष्ट आते हैं, परन्तु वह उनसे घबराता नहीं, उन्हें वह अपनी प्रत्यनिष्ठा की कसौटी मानता है।
बात उन दिनों की है, जब भारत की राजधानी कलकत्ता थी। वहीं वॉयसराय केनिंग रहते थे। सर्दी का मौसम था। एक सत्याचरणी सिपाही उस कड़ाके की सर्दी में वॉयसराय की कोठी पर गश्त लगाता हुआ पड़ा दे रहा था। उसके चलने से बूट की खटखट की आवाज होती थी। अन्दर सोई मेम साहब की नींद उड़ गई। उसे बार-बार की इस खटखट से नींद नहीं आ रही थ। मेम र एक नौकर को बुलाकर कहा - "उस सिपाही से कह दो, एक जगह खड़ा रहे गश्त लगाना बन्द कर दे। "
नौकर ने आकर जब सिपाही से मेम साहब की ओर से घूमने की मनाही का आदेश सुनाया, तो उसने ऐसा करने में लाचारी बताते हुए कहा - " अपने अफसर का हुक्म ऐसा ही है।" लौटकर नौकर मेम साहब के पास आया सारी बात सुनकर मेम को भी गुस्सा आ गया। वह स्वयं उठकर बाहर आई और सिपाही को गश्त लगाने के