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________________ संभिन्नचित होता श्री से वंचित : २ १३६ एकाग्रता का स्वभाव उत्पन्न करना और उसे व्यग्रता से बिखरने से बचाना आवश्यक है । वैज्ञानिक शोधकार्यों में इतने दत्तचित्त एवं एकाग्र होकर कार्य करते हैं कि उन्हें लैबोरेटरी से बाहर की दुनिया का भी ज्ञान कहीं होता। एक-एक सिद्धान्त के रहस्यों की वे छानबीन करते चले जाते हैं, और कोई नकोई नई चीज ढूंढकर निकाल लाते हैं। एक ही बात जब तक मस्तिष्क में रहती है तब तक उसी के अनेक साधनों के विषय में सूझबूझ एवं स्फुरणा होती है। उनमें से उपयोगी बातों की पकड़ चित्त की एकाग्रता से ही होती है। जैनशास्त्रों में कछुए का दृष्टान्त देकर वित्त की एकाग्रता साधने की प्रेरणा दी गई है। जैसे कछुआ विपत्ति की आशंका होते हैं। अपने सारे अंगों को चारों ओर से समेट लेता है, सिकोड़ लेता है। इससे उसके जीवन में उपस्थित होने वाले खतरों से वह सर्वथा बच जाता है, उसी प्रकार साधक भी वित्त को चारों ओर से एकाग्र करके काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों के खतरे से बच जाता है। विद्यार्थी के पाँच लक्षणों में एक लक्षण है— 'बकध्यानम्' बगुला शरीर और मन की सारी क्रियाओं को साधकर एक प्रकार से निश्चेष्ट हो जाता है। और इसी धोखे से मछली बाहर आती है, वह खट से उसे पकड़ा लेता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सच्ची सफलता पाने के लिए साधक को भी बकापनी की तरह एकाग्रचित्त होना आवश्यक है । एक ही अभीष्ट लक्ष्य की दिशा में अपनी सारी चित्तवृत्तियाँ समारोपित रखने से महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी तो होती ही है, साथ ही भूलें और त्रुटियाँ भी उसकी समझ में आ जाती हैं, जिससे कार्य में गड़बड़ी होने की आशंका नहीं रहती है। इस अनुभव के आधार पर ही कठिनाइयों से बच जाना सम्भव होता है। प्रतिदिन नया काम बदलने से किसी तरह का ज्ञान प्राप्त नहीं होता और न ही अनुभव विकसित होते हैं । आकाश में उड़ने वाले हवाई जहाज के पायलट को कुतुबनुमा के सहारे रास्ता तय करना और चलना पड़ता है। वहाँ सड़कों के से निशान नहीं होते, जैसे सड़कों पर मोटरें दौड़ती हैं, वैसे वहाँ जहाज नहीं दौड़ सकते। पायलट को बादलों से बचाव तथा हवा के कटाव आदि में पंखों को भी ऊपम्नीचे करना पड़ता है। पायलट यदि कोई उपन्यास पढ़ना चाहे तो विमान के गिर जाऊ का ही खतरा पैदा हो सकता है, इसलिए उसका सारा ध्यान एकाग्रतापूर्वक विमान को ठीक तरह से चलाने में लगा रहता है। लक्ष्य में एकाग्र हुए बिना जहाज के पायलट को कोस भर की यात्रा करना भी दुःसाध्य हो जाएगा। भारी भरकम मशीनरी पर नियन्त्रण करने की क्षमता करना इन्जीनियर में क्यों होती है ? उसमें यह विशेषता होती है कि कार्य करने के समय उनका सारा ध्यान मशीन के कल-पुर्जो के साथ बँध जाता है। एक-एक हिस्से पर पूरा-पूरा ध्यान रखकर
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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