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आनन्द प्रवचन : भाग ६
है, अपने आपको दीन-हीन, भिखारी एवं कंगात मान लेता है, दरिद्रता के भय से सदा भयभीत, आतंकित और शंकित बना रहता है, सदैव विफलता के ही विचार किया करता है, तब वह दरिद्रता अत्यन्त भयंकर और विनाशक हो जाती है। दरिद्रता के भावों ऐसा व्यक्ति दीनतापूर्वक दरिद्रता की ओर बढ़ता जाता है, उससे पराङ्मुख होकर पीछा छुड़ाने का साहस नहीं करता। जब देखो तब वह दरिद्रता के वातावरण एवं मनोभावों से घिरा रहता है। ऐसी मानसिक दरिद्रता सदैव आत्मविश्वास और आत्मगौरव पर आघात किया करती है। तातर्म्य यह है कि दरिद्रता का विचार करते हुए मनुष्य चाहे जितना कठोर पुरुषार्थ क्यों कर ले, न तो वह उस कार्य में सफल होगा और न ही श्रीसम्पन्न । जब व्यक्ति अपना मुख दरिद्रता की ओर ही रखेगा, तब वह श्रीसम्पन्नता कैसे प्राप्त कर सकेगा? जया किसी का कदम विफलता की ओर से जाने वाली सड़क पर पड़ेगा तो वह सफलता के मन्दिर तक कैसे पहुँच सकेगा? ____ दरिद्रता के विचार ही मनुष्य को दरिदका से जोड़े बांधे रखते हैं और दरिद्रतापूर्ण परिस्थितियाँ ही उत्पन्न करते हैं क्योंकि जब व्यक्ति रात-दिन दरिद्रता के सम्बन्ध में ही चर्चा, बातचीत या जीवनयापन करता है, तब वह मानसिक दृष्टि से बिलकुल दरिद्र हो जाता है और यही सबसे अधिक निकृष्ट दरिद्रका है।
जिन लोगों का चित्त सदा चिन्तित रहता है, हृदय बहुत ही संकुचित, अनुदार और स्वार्थी रहता है, वे धन एकत्र होने पर भी दरिद्र मनोवृत्ति के रहते हैं। बहुत ही कंजूसी करके और कष्ट झेलकर मम्मण सेट की तरह धन को एकत्र करके उसको तिजोरी में बंद कर देना, स्वयं बीमार पड़ने पर एक पैसा भी खर्च न करना, ठण्ड से ठिठुरते रहना, पर गर्म कपड़े न लेना, किसी दुखी को एक पैसा मदद भी न करना, ये सब मनोव्यापार धन होने पर भी दरिद्रता के समान हैं। जैसे धन न होने के कारण एक दरिद्र सदा शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाया करता है, वैसे ही इस प्रकार का अनुदार, संकीर्ण हृदयकंजूस धन होने पर भी कष्ट उठाया करता है, है वह दरिद्र का दरिद्र ही। श्री सम्पत्रता किसको, किसको नहीं ?
श्रीसम्पन्नता संसार में उन्हीं लोगों को वास्तविक रूप में प्राप्त हुई है, जो उदारचेत्ता, साहसी, व्यापक मनोवृत्ति वाले तथा पुरुषार्थी रहे हैं। जिनके चित्त में आत्मविश्वास और उत्साह का दीपक जल ज्छा है, जो दान, पुण्य परोपकार एवं सेवा करके श्रीसम्पन्नता के बीज बोते रहे हैं। जिन लोगों ने अपने हृदय से दरिद्रता के भाव निकाल फेंके हैं, जो सदा हर प्रवृत्ति को आना और श्रद्धा तथा लगन और तत्परता के साथ करते रहे हैं, जो सदा अपने चित्त में सफलता और सम्पन्नता की बातें सोचते रहे हैं, विफलता और विपन्नता के विचारों से जिन्होंने बिलकुल मुख मोड़ लिया है।
विदेश में एक व्यक्ति बहुत वर्षों तक गरीब रहा, खाने पीने तक का कोई