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________________ ११२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ कराती तो राजा भोज हमारी दरिद्रता को दाण्ड कैसे देता ? एक हजार स्वर्णमुद्राएं कैसे आती?" बन्धुओ ! यह है दरिद्रावस्था से होने वाली दुरवस्थाओं का चित्रण ! क्या आप कह सकते हैं कि दरिद्रता-श्रीहीनता अच्छी वस्तु है ? भौतिक दरिद्रता कितनी खतरनाक जिसमें भौतिक दरिद्रता तो और भी अधिक भयंकर और बिनाशक है। जब मनुष्य घोर दरिद्रावस्था में हो, उस समय उसकी मानवता भी सुरक्षित रहनी कठिन हो जाती है। जब बह चारों ओर तकाजे करने वाले ऋणदाताओं से घिरा हुआ हो, पैसे पैसे का मोहताज हो, उसके स्त्री बस्ने भूख के मारे बिलबिला रहे हों, उस समय उसके लिए मान मर्यादा का निभाना भी प्रमः असम्भव हो जाता है। कोई विरला ही ज्ञानी एवं सभ्यगदृष्टि पुरुष होता है, जो ऐसी दरिद्रावस्था में भी प्रसन्न, मस्त, निर्भीक होकर स्वतंत्रतापूर्वक सिर उठा सकता है। अन्यथा, देखा यह गया है कि दरिद्रता के कारण कई अच्छे-अच्छे जीवन भी नष्ट हो गए हैं, कई अच्छे प्रतिभावान व्यक्ति दरिद्रता की चक्की में पिसकर अपनी योग्यताओं और क्षमताओं से हाथ धो बैठे हैं। दरिद्रावस्था में पैदा होने वाले अधिकांश व्यक्ति न तो बलवान हो सके हैं, और न ही प्रसन्न व स्वस्थ रह सके हैं। दरिद्रता के कारण उनाका चेहरा मुझाया रहता है, वे असमय में ही बूढ़े हो जाते हैं। जो किसी अंगविकलता या शारीरुिक अस्वस्थता के कारण दरिद्र हो जाते हैं, उनका समाज में अनादर नहीं होता, सनगन उनको सहायता भी देता है। वास्तविक दरिद्रता तो वह है, जिसमें मनुष्य स्वयं कौन-हीन बन जाएं, अपने प्रति, या अपनी योग्यता, शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता के फ्राने अविश्वास लाकर आत्महीनता का शिकार बन जाए। या वह दरिद्रता जो चित्त में चंचलता और शिथिलता के भाव लाकर निठल्ला, अकर्मण्य, उदास और परभाग्योपजीवी बनकर बैठने, किसी भी कार्य को मन लगाकर न करने अथवा अनाचार एवं दुर्घसनों से युक्तजीवन बिताने के कारण होती है। अथवा ठीक तरह से विचार और कार न करने के कारण होती है। कई बार जब मनुष्य सामर्थ्य रहते और सशक्त होते हुए भी हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है, अमुक परिश्रम का कार्य वरने से जी चुराता है, अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता का बहाना बनाता है, या भाम्यवादी बनकर यह कहता फिरता है कि मेरे भाग्य में तो दरिद्रता ही लिखी है, मैं तो आजीवन दरिद्र ही रहूंगा, अगर भगवान की इच्छा मुझे धनवान बनाने की होती तो क्यन्म से ही या होश संभालते ही मुझे धन दे देता, दरिद्र न रखता, या दरिद्र के घर में जन्म न देता, अथवा हमारे पास धन तो है ही नहीं कि जिससे कुछ धंधा करके धन कमा लें और दरिद्रता मिटा दें, क्योंकि धन ही धन को खींचता है, माया से ही माया मिलती है, इस प्रकार की उत्साहहीन बातें कहकर
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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